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वेद के मन्त्रों के सम्बन्ध में उठी हुई अर्थ विवक्षा विषयक आशंका को निरस्त करने के लिए उनके अर्थों का प्रकाशन आवश्यक था। शब्दों के अर्थों का प्रकाशन निर्वचन के माध्यम से ही संभव है। निर्वचन के चलते किसी शब्द में निहित समग्र अर्थ प्रकाशित हो जाते हैं। साथ ही साथ किसी शब्द के अनेक अर्थों के कारण का भी पता चल जाता है। आचार्य यास्क का निरुक्त इस क्षेत्र में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। यद्यपि अनेक निरुक्तकार हो गये हैं लेकिन उनके निरुक्त ग्रन्थों की उपलब्धि आज नहीं होती। आचार्य यास्क ने अपने निरुक्त में लगभग चौदह पूर्ववर्ती एवं तत्कालीन निरुक्तकारों की चर्चा की है जिससे उन निरुक्तकारों के सम्बन्ध में कुछ जानकारी प्राप्त हो जाती है तथा उनके निर्वचन सिद्धान्तों का पता चल जाता है।
निरुक्त में शब्दों के अर्थ प्रकाशन करने वाले कुछ सम्प्रदायों की भी चर्चा प्राप्त होती है। शब्दों के अर्थ प्रकाशन में • वैयाकरणा:, नैदानाः, याज्ञिकाः, पूर्वेयाज्ञिका:, आत्मप्रवादाः, नैरुक्ताः, हारिद्रविका:, काठका:, ऐतिहासिका : आदि सम्प्रदायों का उल्लेख हआ है। यास्क के समय उपर्युक्त सभी सम्प्रदाय शब्दों के अर्थ प्रकाशन में अपने-अपने सिद्धान्तों के लिए प्रसिद्ध थे। इन सभी सम्प्रदायों का कार्य यद्यपि शब्दों का निर्वचन करना नहीं था लेकिन शब्दों के अर्थ प्रकाशन में योग देना अवश्य था। अर्थ प्रकाशन के क्रम में कुछ निर्वचन अवश्य प्रस्तुत हो गये हैं।
वैयाकरणों का मूल प्रयोजन शब्दों का व्युत्पादन है। शब्दों के व्युत्पादन में भी अर्थ प्रकाशन होता है। इस सम्प्रदाय की एक सुदीर्घ परम्परा है जिसमें मुनित्रय का स्थान अधिक महत्त्वपूर्ण है। पाणिनि, कात्यायन एवं पतञ्जलि ने क्रमशः सूत्र, वार्तिक एवं भाष्य लिख कर इस सम्प्रदाय को आयामित किया है। पाणिनि की अष्टाध्यायी में उनके सारे सूत्र व्यवस्थित हैं। कात्यायन ने पाणिनि के सूत्रों पर ही वार्तिक की रचना की। पुनः पतञ्जलि ने पाणिनि के सूत्रों पर वृहद्भाष्य की रचना की जो महाभाष्य के नाम से प्रसिद्ध है। पाणिनि ने अपनी अष्टाध्यायी में कई वैयाकरणों का भी उल्लेख किया है। निश्चय ही उनमें अधिकांश वैयाकरण पाणिनि के पूर्ववर्ती होंगे तथा कुछ समकालीन। वैयाकरणों के शब्द व्युत्पादन से अर्थ का प्रकाशन अवश्य होता है लेकिन नैरुक्तों की भांति शब्दों के समग्र अर्थों के प्रकाशन की चेष्टा वहां नहीं की जाती।
नैदान शब्द निदान से निष्पन्न है। निदान का अर्थ होता है. मूलान्वेषणकर्ता। शब्दों के मूलान्वेषण कर्ता नैदान के अन्तर्गत परिगणित होते हैं। शब्दों एवं शब्दों के अर्थों का मूल खोजना ही इनका मूल प्रयोजन है। उस मूलान्वेषण