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प्राक्कथन
निर्वचन शब्दों के अर्थ प्रतिपादन की वह प्रक्रिया है जिससे शब्दों में निहित समग्र अर्थों के अभिव्यक्त होने की स्थितियों का पता लगाया जाता है। किसी भी शब्द के सम्बन्ध में निःशेष कथन या समग्र विचार निर्वचन के अन्तर्गत समाहित हैं। निर्वचन के लिए निरुक्त, व्युत्पत्ति, व्याख्या आदि शब्दों का प्रचलन भारतीय साहित्य में देखा जाता है। निरुक्त तथा निर्वचन में अर्थगत या शब्दयत कोई तात्त्विक भेद नहीं है । व्युत्पत्ति एवं व्याख्या यद्यपि निर्वचन के लिए कहीं-कहीं प्रयुक्त होते हैं लेकिन निर्वचन के समग्र उद्देश्यों का प्रकाशन इन शब्दों से अभिव्यक्त नहीं होता । निर्वचन के लिए इन सारे शब्दों का प्रचलन इस अर्थ में उसके रूढ़ होने का परिणाम है।
वेद का शाब्दिक अर्थ ज्ञान है। वेद ज्ञान की आधारशिला पर आधारित सम्यक ज्ञान प्रतिपादन में निरत है। मन्त्र एवं ब्राह्मण भाग को वेद के अन्तर्गत मानने पर संहिताओं के अतिरिक्त ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् भी इसमें समाविष्ट हैं। वेद समग्र ज्ञान. लाभ. विचार एवं सत्ता का प्रतिपादक तो है ही यह भारतीय संस्कृति का अमूल्य धरोहर है । आर्यों की वैदिक सभ्यता का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करने वाला वेद उनके विकसित मस्तिष्क को भी प्रकाशित करता है। वैदिक संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में है। उस समय का साहित्य विश्व की किसी दूसरी भाषाओं में लगभग उपलब्ध नहीं होता। यह कहना असंगत नहीं होगा कि जिस समय विश्व में सभ्यता का उदय भी नहीं हुआ था उस समय भारत में सभ्यता का प्रकाश जगमगा रहा था। भारतीय सभ्यता के प्रकाश की झलक के लिए वैदिक साहित्य का अनुशीलन अपेक्षित है। वैदिक साहित्य श्रुति परम्परा से सुरक्षित रहा है। जटा, माला, शिखा, रेखा आदि विभिन्न विकृतिपाठों के चलते मन्त्रों के स्वरूप में अन्तर तो आज तक नहीं आ सका लेकिन देश काल एवं पात्र के अनुरूप उनके अर्थों में अन्तर देखा जाने लगा। शब्दों की अनेकार्थता प्रसिद्ध है। एक ही शब्द विभिन्न प्रकार के अर्थों के प्रतिपादन की क्षमता से युक्त होता है। शब्दों में भिन्नार्थता की प्रवृत्ति विविध कारणों का परिणाम है। यह देखा जाता है कि विभिन्न आचार्यों ने वैदिक मन्त्रों के अर्थ को भी अनेक रूपों में देखने की चेष्टा की है। कुछ सम्प्रदाय विशेष के लोग तो परम्परागत अर्थों की जगह दूसरे अर्थों के प्रतिपादन में निरत हो गये हैं तथा उन्होंने वेद के अर्थों को असंगत सिद्ध करने का प्रयास भी किया है। वेद के ही कुछ शब्द ऐसे हैं जिनकी जानकारी के अभाव में उनका अर्थ करना असंभव है। वैसे शब्दों के सम्बन्ध में विरोधी विचार वालों का कहना है कि वेद के कुछ मन्त्र अनर्थक हैं।