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________________ सन्दर्भ संकेत :1. नि0 3 14, 2. पुराणमाख्यानम् – (प्रसिद्धि) 3. सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च । वंशानुचरितं चैव भवतो गदितं मया - वि० पु0 6 18 2 4. म द्वयं भद्वयं चैव ब्रत्रयं वचतुष्टयम् ।अनापल्लिंग कूस्कानि पुराणानि प्रचक्षते ।। सं0 साल का इति0 गैरोला -- पृ0 297, 5. विष्णु पु0 114 16, 6. अ0 पु0 17 18 म0 स्मृO 1 |10, 7. विष्णु0 1 15 143, 8. विष्णु पु0 1114 189 9. नि0 114, 10. वि0. पु0 1/14 193, 11. रघु0 4 112, 12. विष्णु पु01115 122 (पृ0 84 पादटिप्पणी भी द्रष्टव्य), 13. वि0 पु0 1115 1116, 14. विo पु0 3 11 145, 15. नि0 12 12, 16. अ0 पु0 19 16, 17. अ0 पु0 115 127, 18. भा० पु0 3 112 |10, 19. नि. 10 11, 20. भा0 पु0 3 123 144, 21. ब्र0 वै0 पु० (हला0 पृ0 566)। (छ) रामायणमें निर्वचनों का स्वरूप रामायण आदि काव्य है। वाल्मीकि आदि कवि हैं। लौकिक संस्कृतमें भी यत्र-तत्र निर्वचन उपलब्ध होते हैं । रामायणमें भी कई स्थलों पर निर्वचन हुए हैं। रामायणके निर्वचन द्रष्टव्य हैं : वाल्यात् प्रभृति सुस्निग्धो लक्ष्मणो लक्ष्मिवर्धनः रामस्यलोकरामस्य भ्रातुयेष्ठस्य नित्यशः ।। सर्वप्रियकरस्तस्य रामस्यापि शरीरतः ।। इस श्लोकमें लक्ष्मीवर्धनः लक्ष्मणः एवं लोकरामस्य रामस्यमें क्रमशः लक्ष्मण एवं रामका निर्वचन प्राप्त होता है। यहां शब्दोंकीध्वन्यात्मक सार्थकताके लिए प्रयास हुआ है। 2. “सपत्ना तु गरस्तस्यै दत्तो गर्भजिघांसया सह तेन गरेणैव संजातः सगरोऽभवत् ।।2 इस श्लोकसे स्पष्ट है कि सपत्नीने गर्भनष्टार्थ उसे जो गर दिया था, उसके साथ उत्पन्न होनेके कारण वह सगर कहलाया । अतः सगर शब्दमें स सह का वाचक एवं उत्तर पद गर है। इसमें ऐतिहासिक आधार माना जायेगा। अग्रतस्तु ययौ तस्य राघवस्य महात्मनः सुग्रीवः संहतग्रीवो लक्ष्मणश्च महावलः । ।”3 ३७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क 1.
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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