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________________ यज्ञे महीपतिः पूर्वा राजाभूज्ञ्जनरञ्जनात् । । ° यहां राजा शब्दका निर्वचन किया गया है । जनरञ्जनके कारण राजा | कहलाता है राजा शब्दमें राज् धातुका योग माना जायेगा । कालिदासने भी राजा प्रकृति रञ्जनात् " कह कर इसका समर्थन किया है। 5. तस्यशापभयादभीता दाक्षिण्येन च दक्षिणा प्रोक्ता प्रणय भंगातिर्वेदिनी न जहौ मुनिम् । । 2 इसमें दक्षिणा शब्द दाक्षिण्यके कारण बना यह निरुक्ति है । दक्षिणा एक नायिका भेद भी है । अन्य नायकमें आसक्त रहती हुई भी जो अपने पूर्व नायकको गौरव, भय, प्रेम एवं सद्भावके कारण नहीं छोड़ती है उसे दक्षिणा समझना चाहिए। दाक्षिण्य गुणके कारण ही उसे दक्षिणा कहा जाता है। 12 6. 7. तस्य शाखो विशाखश्च नैगमेयश्च पृष्ठजाः अपत्यं कृतिकानां तु कार्तिकेय इतिस्मृतः । । " यहां स्पष्ट है - कृतिकाओंका पुत्र कार्तिकेय कहलाया जो तद्धितान्त है। यस्माद्विष्टमिदं विश्वं तस्य शक्त्या महात्मनः तस्मात्स प्रोच्यते विष्णुः विशेर्धातोः प्रवेशनात् । । 14 इसमें विष्णु पद व्याख्यात है । विश् प्रवेशने धातुके योगसे विष्णु शब्द निष्पन्न हुआ है । निरुक्तमें भी इसका निर्वचन प्राप्त होता है । 15 8. सिंहिका चाभवत् कन्या विप्रचित्तेः परिग्रहः राहुप्रभृतयस्तस्यां सैंहिकेयाइति श्रुताः । *16 इसमें सिंहिकासे सैंहिकेयका निर्वचन प्राप्त होता है। यह तद्धितान्त शब्द है। निर्वाचनका आधार भी तद्धित है । 9. यस्मिन् फलति श्रीर्गौर्वा कामधेनुर्जलंमही दृष्टिरम्यादिकं यस्मात् फल्गुर्तीर्थं न फल्गुवत् । । 7 इस श्लोक में फल्गु शब्दका निर्वचन प्राप्त होता है । फल्गु शब्दमें फल निष्पतौ धातुका योग फलति क्रियासे स्पष्ट हो जाता है । यदरोदी सुरश्रेष्ठ सोद्वेग इव 10. ३५ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क बालकः
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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