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________________ (१०) कलि :- इसका अर्थ कलियुग है । निरुक्तके अनुसार-कलिः किरते: विकीर्ण मात्रा : यह शब्द कृविक्षेपे धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि कलियुग में शास्त्रीय व्यवस्थाएं विखर जाती हैं। कृ-कर, र काल में परिवर्तन + इः कर कलिः रलयोरैक्यम् के अनुसार र काल में तथा ल का र में परिवर्तन प्रायः देखा जाता है। इस प्रकारका परिवर्तन भाषा विज्ञानके अनुसार भी मान्य है। यह निर्वचन धार्मिक आधार रखता है। व्याकरणके अनुसार कल् गतौ धातुसे इः प्रत्यय कर या कल्+ इन् प्रत्यय कर कलिः शब्द बनाया जा सकता है। २२ (११) कला :- कारीगरी । निरुक्तके अनुसार कलाः किरतेर्विकीर्णमात्राः कला शब्द कृ विक्षेपे धातुके योगसे निष्पन्न होता है। कला अपने समूह से विखरी रहती हैं।२३ कृ-कर-र का ल में परिवर्तन- कल् + अच् = कल-कला। भाषा चिज्ञानके अनुसार भी इस प्रकारका परिवर्तन मान्य है। इस निर्वचनका आधार दृश्यात्मक है। व्याकरणके अनुसार कल् शब्दसंख्यानयो: + अच् प्रत्यय कर केला शब्द बनाया जा सकता है। २४ (१२) मरुतः :- यह मध्य स्थानीय देवता वायुका वाचक है। निरुक्तके अनुसार (१) मरुतो मितराविणो वा२५ वे कम शब्द या सीमित शब्द करने वाले होते हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें मित + रू शब्दे धातुका योग है। मित-म+रू शब्दे मरूतः (२) मितरोचिनो वा२५ ये विद्युत् आदिकी अपेक्षा कम चमकने वाले होते हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें मित + रूच् दीप्तौ धातुका योग है- मित-म + च् दीप्तौ=मरुतः।(३)महद्द्रवन्तीति वा २५ यह महान् गति करने वाले होते हैं। इसके अनुसार इस शब्दमें महत् + द्रु गतौ धातुका योग है- महत् +द्रु = मरुत्। उपर्युक्त निर्वचनोंमें किसीका ध्वन्यात्मक आधार पूर्ण उपयुक्त नहीं है। सभीका अर्थात्मक महत्त्व है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे पूर्ण उपयुक्त नहीं माना जायगा। व्याकरणके अनुसार मृ + उत् प्रत्यय कर मरूत् शब्द बनाया जा सकता हैं । २७ (१३) स्वर्क: :- पूर्ण प्रकाश । निरुक्तके अनुसार- (१) स्वर्कः स्वञ्चनैरिति वा२५ अर्थात् उत्तम गमन वाले, इसके अनुसार स्वर्क शब्द में सु + अंच् गतौ धातु का योग है। (२) स्वर्चनैरिति वा अर्थात् उत्तम अर्चन वाले, इसके अनुसार इस शब्द में सु + अर्च् दीप्तौ धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । (३) स्वर्चिभिरिति वा अर्थात् सुन्दर प्रज्ज्वलन से युक्त है। इसके अनुसार इस ४६७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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