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उपयुक्त माना जायगा। ध्वन्यात्मक महत्व इसका पूर्ण उपयुक्त नहीं है। व्याकरणके अनुसार चर् गतौ धातुसे अण् प्रत्यय कर चारू शब्द बनाया जा सकता है।११।।
(६) मृत्यु :- निधन। शरीर से प्राण वायुका निकल जाना मृत्य है। निरुक्तके अनुसार- मृत्युरियतीति सत: यह लोगों को मारती है। इसके अनुसार इस शब्दमें मृङ् प्राण त्यागे धातुका योग है। यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। यास्क मृत्यु शब्दक निर्वचन क्रममें आचार्य शतवलाक्ष्यके मतका भी उल्लेख करते हैं मृतं च्यावयतीति शतवलाक्ष्यमौद्गल्यः मुद्गलके अपत्य शतवलाक्षके अनुसार मृत्यु मृतकको दूसरे लोकमें ले जाती है। इसके अनुसार इस शब्दमें मृत+च्यु गतौ धातुका योग है (मृत् मृ + च्यु =मृत्युः)१२ यह मात्र अर्थात्मक महत्त्व रखता है। मृत्यो मदेर्वा मुदेर्वा मृत्यु शब्द मद्या मुद्द्धातुके योगसे निष्पन्न होता है। यह निर्वचन अर्थात्मक दृष्टि से भी उपयुक्त नहीं है। यास्कके निर्वचनके अतिरिक्त सभी निर्वचनोंमें ध्वन्यात्मकताका अभाव है। डा. वर्मा इसे असंगत मानते हैं।१३ व्याकरणके अनुसार-मृङ्प्राणत्यागे धातुसे त्युक् प्रत्यय कर मृत्युः शब्द बनाया जा सकता है।१४
(७) धाता :- यह सरस वायका वाचक है। निरुक्तके अनुसार-धाता सर्वस्य विधाता यह सभी ओषधियोंका स्रष्टा है। औषधियों को सरसता प्रदान कर बढाने चाला है। इसके अनुसार इस शब्दमें धा धारण पोषणयोर्दाने च धातुका योग माना जायगा। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार धा + तृच् = धातृ धाता शब्द बनाया जा सकता है।१५
(८) विधाता :- विधाता की स्वतंत्र व्याख्या नहीं है। यह धाताके समान ही व्याख्यात है।
(९) कलश :- यह घटका वाचक है। निरुक्तके अनुसार-कला अस्मिंच्छेरते मात्रा: इसमें जलकी मात्रा रहती है। इसके अनुसार इस शब्दमें कला का कल +शी शयने धातुका योग है-१६ कला-कल +शीङ्-शः =कलश: इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार-कल +शुगतौ +ङ:१७ = कलश: या क +लस् + अच्१८ = कलसःशब्द बनायाजा सकता है(कलंमधुराव्यक्तशब्दं शवति जलपूरणसमये प्राप्नोतीति कलस:। कल +शु गतौ-ड:= कलश:)१९ कलश तथा कलस दोनों शब्द प्रयुक्त होते हैं। निर्वाण तन्त्र में भी कलसका निर्वचन प्राप्त होता है जो धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व रखता है।२१ ४६६:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क