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________________ - कण्टतेर्वासाध्यः यस्मात्स तरोरुद्गतो भवति।नि.दु.वृ.९।३,८९-अष्टा.३।१।१३३, ९० -नि. ९।४, ९१ -यतस्तत् मुहुःव्रीह्यादिषु सरति-नि.दु.वृ.९।४, ९२ . वृषादिभ्यश्च । उणा. १।१०६, ९३ - आत्नी धनुष्प्रान्ते। यस्मात् ते अर्तन्यौ। गत्यर्थात् ऋतेः। ते हि इषून् गमयतः-नि.दु.वृ.९।४,९४ - वै. इण्डे. भाग २। पृ. ४२८, ९५ - नि. ९।४। (घ) निरुक्तके दशम अध्यायकै निर्वचनोंका मूल्यांकन निघण्टुका दैवत काण्ड उसके पंचम अध्यायमें पठित है। निघण्टुके पंचम अध्यायके चतुर्थ खण्डमें ३२ देवताओंसे सम्बद्ध पद संकलित हैं। इन ३२ पदोंका निर्वचन निरुक्तके दशम अध्यायमें हुआ है।निघण्टुके पंचम अध्यायके चतुर्थखण्डके अधिकांश नाम देवताओंके है तथा कुछ नाम देवताओं से सम्बद्ध हैं।यही कारण है कि इनका संकलन दैवत काण्डमें हुआ है। निरुक्तके दशम अध्यायमें कुल ५७ निर्वचन प्राप्त होते हैं। इन निर्वचनों में निघण्टुके पंचम अध्यायके चतुर्थ खण्डमें पठित ३२ पद भी हैं। शेष २५ पद जिनका निर्वचन यास्कने किया है वे प्रसंगतः प्राप्त हैं। सभी निर्वचनोंका भाषा विज्ञान एवं निर्वचन प्रक्रिया की दृष्टिसे अत्यधिक महत्व है। . भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे सर्वथापूर्ण निर्वचन निम्नलिखित हैं। इन शब्दोंके निर्वचन एकसे अधिक भी है। इन निर्वचनोंमें कुछ पदोंके सभी तथा कुछके एकाधिक निर्वचन भाषा विज्ञानके अनुसार संगत हैं। भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे सर्वथा पूर्ण निर्वचन - वायुः, वरुणः, कबन्धम् , रूद्रः, तिग्मः, आयुधम् , दिद्युत्, तोकम् , तनयम् , जरा, उत्सः, पर्जन्यः, वृहस्पतिः, चमसः, ब्रह्मणस्पतिः, क्षेत्रस्यपतिः, क्षेत्रम्, वास्तोस्पतिः, वाचस्पतिः, अपानपात्, यमः, मित्रः, कृष्टिः, कः, हिरण्यगर्भः, गर्भः, विश्वकर्मा , मन्युः, सविता, हिरण्यस्तूपः, वातः, वेनः, जरायुः, शिशुः, रिहन्ति, असनीतिः, इन्द्रः परूच्छेपः, प्रजापतिः और बुधनम् है। इन शब्दोंमें किन्हीं शब्दोंके एकाधिक निर्वचन भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे अपूर्ण भी हैं। ____ध्वन्यात्मक शैथिल्यसे युक्त निर्वचनोंमें इन्द्रः, वृहस्पतिः ब्रह्मणस्पतिः, स्तूपः, जरायुः, शिशुः तथा परूच्छेद शब्दोंके निर्वचन परिगणनीय हैं। इनमें स्वरगत या व्यंजनगत शैथिल्य है। दशम अध्यायके कुछ निर्वचन भाषा विज्ञान की दृष्टि से अपूर्ण भी है। वे है - शेवः, तायः, मधु तथा असुरः। ये सभी निर्वचन यद्यपि निर्वचन प्रक्रिया से उपयुक्त हैं। अर्थात्मक शैथिल्यके उदाहरणमें श्रवः को देखा जा सकता है। तनयम् शब्दमें अर्थादेश स्पष्ट है। आजकल तनयका अर्थ पुत्र होता है लेकिन यास्क ने ४४५:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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