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________________ ९४ (६५) शुनासीरौ :- यह वायु एवं आदित्य दो देवताओंका वाचक है ! मेकडोनेल एवं कीथ कृषि देवताओंके नामके रूपमें शुनासीर शब्दको मानते हैं। निरुक्तके अनुसार-शुनो वायुः शु एत्यन्तरिक्षे, सीर आदित्यः सरणात् ५ अर्थात् शुनः वायु का वाचक है क्योंकि वे शीघ्रता से अन्तरिक्षमें गमन करते हैं। इस निर्वचनमें शु शीघ्रताका वांचक है तथा नु गत्यर्थक धातु है-शु + नु = शुनः, सीर: सृतौ धातु से निष्पन्न होता है, आदित्य भी गमन करते हैं। सृ-सीरः । शु+नु गतौ = शुनः सृ - सीर : शुनाशीरः । यह निर्वचन सामासिक प्रक्रिया पर आधारित है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा।यह देव युगल कृषि प्रधान देवताके रूपमें पठित हैं यद्यपि आदित्य द्युस्थानीय तथा वायु अन्तरिक्षस्थानीय हैं। (६६) देवीजोष्ट्री :- दो देवताओंका युग्म द्यावापृथिवी या दिन रात या व्रीह्यादि अन्न एवं संवत्सरका वाचक है। निरुक्तके अनुसार देवीजोष्ट्री देव्यौ जोषायित्र्यौ द्यावापृथिव्याविति वाहोरात्रे इतिवा । शस्यं च समाचेति कात्यक्य:।९५ अर्थात् देवीजोष्ट्री जो दो देवियां हैं तथा तृप्ति प्रदान करने वाली है। इसके अनुसार देवी + जुष् प्रीतिसेवनयो: धातुसे जोष्ट्रीका योग ही देवी जोष्ट्री है। यास्क इसे द्यावापृथिवी या दिन रात मानते हैं। आचार्य कात्थक्य व्रीह्यादि अन्न एवं सम्वत्सर मानते हैं। यास्कके इस शब्दका निर्वचन स्पष्ट है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार पूर्ण उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । (६) देवीऊर्जाहुती : यह दो देवताओंका युग्म है तथा द्यावापृथिवी, दिनरात या शस्य सम्वत्सरका वाचक है। निरुक्तके अनुसार देवी ऊर्जाहुती देव्या ऊर्जाह्वान्यौ द्यावापृथिव्याविति वाहोरात्रे इतिवा शस्यं च समाचेति कात्यक्यः । ९५ अर्थात् ये देवियां अन्न एवं रसोंको आह्वान करने वाली है। इसके अनुसार देवी +ऊर्जा + ह्वे स्पर्धायां शब्दे च धातु का योग है। आचार्य यास्कके अनुसार यह द्यावापृथिवी या दिन रातका वाचक है तथा आचार्य कात्यक्य के अनुसार यह शस्य तथा सम्वत्सरका वाचक है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जाएगा। -: संन्दर्भ सूची : १ - नि. ९।१, २ - वसिवपियजिव्रजिसदिहनिवारिभ्य इञ् - उणा ४४२ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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