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________________ कर तविष + डीप् = तविषी शब्द बनाया जा सकता है।५९ (४४) गंगा :- यह नदीका नाम है। निरुक्तके अनुसार गंगा गमनात्४९ अर्थात् गमन करनेके कारण गंगा कहलायी, क्योंकि यह लगातार चलती रहती है। इसके अनुसार इस शब्दमें गम् धातुका योग है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। उपर्युक्त निर्वचन सामान्य नदीके अर्थमें भी संगत है परन्तु यमुना आदिके साथ प्रयुक्त होनेसे भागीरथी समझना उपयुक्त होगा। दुर्गाचार्यका कहना है६० कि जो विशिष्ट स्थान पर जाती है या विशिष्ट स्थान पर ले जाती है उसे गंगा कहते हैं। व्याकरणके अनुसार गम् गन् प्रत्यय कर गंगा शब्द बनाया जा सकता है-६१ गम् +गन् + टाप् = गंगा। (४५) यमुना :- यह नदी विशेषका नाम है। निरुक्तके अनुसार (१) यमुना प्रयुवती गच्छतीति वा४९ अर्थात् अपने जलकों दूसरी नदियोंके जलमें मिलाती है, या मिलाती हुई जाती रहती है।६२ इसके अनुसार यमुना शब्दमें यु मिश्रणे धातुका योग है। (२) प्रवियुतं गच्छतीति वा४९ अर्थात् वह शान्त सी चलती रहती है। तरंग रहितके समान चलती रहती है। इसके अनुसार इस शब्दमें यु धातका योग है। दोनों निर्वचनोंका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। ध्वन्यात्मक आधार संगत नहीं है। व्याकरणके अनुसार यम् उपरमे धातुसे उनन्६३ प्रत्यय कर यमुन-टाप् = यमुना शब्द बनाया जा सकता है। द्वितीय निर्वचनमें यु मिश्रणे धातु यमुना नदी के जलका प्रयाग स्थित गंगाके जलमें मिलनका संकेत है। (४६) सरस्वती :- यह नदी विशेषका नाम है। निरुक्तके अनुसार सरस्वती सर इत्युदक नाम सर्तेस्तद्वती४९ अर्थात सर जलका नाम है, क्योंकि यह स गतौ धातुके योगसे निष्पन्न होता है। जलमें गत्यात्मकता है। सरसे युक्तको सरस्वती कहेंगे-सरस् + वती= सरस्वती। अर्थात् जलसे युक्तको सरस्वती कहा जाता है।६४ इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार सरस् +मतुप्६५ प्रत्यय कर सरस् +मतुप् (मस्य व:)+सरस+वत्+ डीप-सरस्वती शब्द बनाया जा सकता है। वेदमें सरस्वतीका प्रयोग विद्या दात्री वाणीके अर्थमें भी प्राप्त होता है।६६ सरका अर्थ ज्ञान भी होता है ज्ञान भी गतिशील है। अतः सरस्वती शब्द ज्ञानवतीका द्योतक माना जायगा। (४७) शुतुद्री :- यह नदी विशेषका नाम है। निरुक्तके अनुसार (१) शुतुद्री शुद्राविणी क्षिप्रद्राविणी४९ अर्थात् यह तेजीसे बहने वाली होती है। ४३६:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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