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________________ प्रत्यय कर ककुप् शब्द बनाया जा सकता है। (पृषोदरादित्वात् स लोपः) (११) कुब्ज: :- यह कूबड़ाका वाचक है। निरुक्तके अनुसार कुब्ज: कुजतेर्वा कुब्जतेर्वा१ अर्थात् यह शब्द कुज् कौटिल्ये धातुसे या न्यग् भावार्थक उब्ज् धातुके योगसे निष्पन्न होता है- कुज्- कुब्ज:, कु+ उब्ज् = कूबड़े का मध्य भाग कुटिल या नत होता है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार कु+ उब्ज् आर्जवे धातुसे अच् प्रत्यय कर कुब्जः शब्द बनाया जा सकता है। (१२) अनुष्टुप् :- यह एक वैदिक छन्द है। इसमें आठ-आठ अक्षरोंके चार पाद होते हैं। कुल मिलाकर अक्षरोंकी संख्या ८ x ४ = ३२ होती है। निरुक्तके अनुसार अनुष्टुवनुष्टोभनात्१ अर्थात् अनुस्तवन करनेके कारण ही अनुष्टुप् कहलाया। इस निर्वचन के अनुसार इस शब्द में अनु + स्तुभ् धातुका योग है । गायत्रीमेव त्रिपदांसती चतुर्थेन पादेन अनुष्टोभति अर्थात् आठ-आठ अक्षरके तीन चरणों वाली गायत्री ही चतुर्थ चरण से अनुसरण करनेके कारण अनुष्टुप् कहलाती है२१ ऐसा ब्राह्मण ग्रन्थों में कहा गया है। यास्कके इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार सर्वथा संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। अन्तिम निर्वचन दैवत ब्राह्मण. का है जो अनुष्टुप् छन्दके स्वरूप पर प्रकाश डालता है तथा अनुकरण (अनुस्तोभ) की अर्थात्मकताको स्पष्ट करता है। व्याकरणके अनुसार अनु + स्तुभ् धातु + क्विप् ( षत्वम्) प्रत्यय कर अनुष्टुप् शब्द बनाया जा सकता है। (१३) बृहती :- यह वैदिक छन्द भेद है। निरुक्तके अनुसार- बृहती परिवर्हणात् अर्थात् परिवर्धन या परिवृद्धिके कारण इसका नाम वृहती है। अनुष्टुप् छन्दकी अपेक्षा इसमें चार अक्षर अधिक होते हैं। अनुष्टुप् छन्द में ८ x ४ = ३२ अक्षर होते हैं जबकि वृहती छन्द में ८+ ८ + १२ + ८ ३६ अक्षर होते हैं । उक्त निर्वचनके अधार पर इस शब्दमें वृह् वृद्धौ धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार वृह वृद्धौ धातु + शतृ + डीप्२२ प्रत्यय कर वृहती शब्द बनाया जा सकता है। (१४) पंक्ति :- यह वैदिक छन्द भेद है। निरुक्तके अनुसार- पंक्ति: पंचपदा अर्थात् यह छन्द पांच पदों वाला होता है। इसमें आठ-आठ अक्षरों के पांच पाद होते हैं-८ x ५=४० अक्षर इस निर्वचन में पंच व्यक्तिकरणे धातुका योग है। पंच पंक्ति छन्द ४०० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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