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________________ (५) यजु :- यह यजुर्वेदका वाचक है। निरुक्त के अनुसार यजुर्यजतेः अर्थात् यजन क्रिया से सम्बद्ध होने के कारण यजुः कहलाता है। यजुर्वेदमें यज्ञ की प्रधानता है।१० इस निर्वचनके अनुसार इस शब्दमें यज् धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे सर्वथा संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार यज् देवपूजासंगतिकरणयजनदानेषु धातुसे उस् प्रत्यय कर यजुः शब्द बनाया जा सकता है। (६) साम :- यह सामवेदका वाचक है। निरुक्त्तके अनुसार (१) साम सम्मितंमृचा।१ अर्थात् यह ऋचाके तुल्य परिमाण वाला होता है। ऋचा ही उपासना भेद से साम कही जाती है। इसके अनुसार इस शब्दमें सम्+ मा धातुका योग है। (२) अस्तेर्वा१ अर्थात् यह शब्द अस् क्षपणे धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह ऋचाओंमें निक्षिप्त है। (३)स्यतेपिअर्थात् यह षोऽऽन्तकर्मणि धातुके योगसे निष्पन्न है,क्योंकि साम उपासनात्मक अन्तकर्म है। (४) ऋचा समं मेन इति नैदाना:१ निदान सम्प्रदाय वाले नेताओं का कहना है१२ कि इसे ऋचाके समान माना गया है। इस सम्प्रदायके अनुसार भी साम शब्दमें सम् + मन् धातुका योग है। अर्थात्मक आधार सभी निर्वचनोंके उपयुक्त हैं। प्रथम तृतीय एवं अन्तिम निर्वचन ध्वन्यात्मक महत्व रखते हैं। व्याकरण के अनुसार षोऽन्तकर्मणि धातुसे मनिन् प्रत्यय करने पर सामन् शब्द बनता है। भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसे उपयुक्त माना जायगा। (७) गायत्री :- यह एक छन्द भेद है। निरुक्तके अनुसार (१) गायत्री गायते: स्तुतिकर्मण:१ अर्थात् यह शब्द स्तुत्यर्थक गै धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि इससे देवताओं की स्तुति की जाती है।१३ (२) त्रिगमा वा विपरीता१ अर्थात् त्रि एवं गम् धातुको विपरीत करने पर गायत्री शब्द बनता है- त्रि-गम्-गम् + त्रि-गायत्री। त्रिगमना से तात्पर्य है कि गायत्री छन्दमें तीन चरण होते हैं। प्रत्येक चरण आठ अक्षरोंवाला होता है। गायत्री छन्दके तीन चरण ही उसके तीन गमन हैं। (३) गायतो मुखादुदपतत् इति च ब्राह्मणम्१४ अर्थात् ब्राह्मण ग्रंथों का कहना है कि वह गाते हुए ब्रह्मा के मुख से गिर पड़ी। फलत: गायत्री कहलायी। इस ब्राह्मण ग्रन्थके निर्वचनके अनुसार इस शब्दमें गै + पत् धातुका योग है। यास्कके निर्वचनोंमें ध्वन्यात्मकता एवं अर्थात्मकता पूर्ण संगत है। गै धातुसे इसका निर्वचन मानना भाषा वैज्ञानिक आधार रखता है। लौकिक विग्रहके अनुसार गायन्तं त्रायते इति गायत्री किया जा सकता है क्योंकि यह गायत्री पाठकों की रक्षा करती ३९८ :व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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