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होता है। इसके अनुसार इसका अर्थ होगा जो भूजा हुआ हो। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार लज् भर्जने धातुसे घञ् प्रत्यय कर लाजा शब्द बनाया जा सकता है - लज् + घञ् लाजः लाजा।४७
(६३) स्यम् :- इसका अर्थ होता है खाद्यान्न साफ करने वाला पात्र विशेषसूर्प। निरुक्तके अनुसार-स्यं शूर्प स्यते:२२ अर्थात् स्य शूर्प का वाचक है तथा यह सो अन्तकर्मणि धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि इससे खाद्यान्न से अनावश्यक वस्तुएं फटक दी जाती हैं, निकाल दी जाती हैं।४८ इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसे संगत माना जायगा।
(६४) शूर्पम् :- यह खाद्यान्न आदिको साफ करने वाला सूप विशेषका वाचक है। निरुक्तके अनुसार १- शूर्पमशनपवनम्२२ अर्थात् यह अन्नको पवित्र करने वाला होता है। इसके अनुसार शूर्पम् शब्दमें अश्+ पू पवने धातुका योग है। २. शृणातेर्वा अर्थात् यह शब्द शृ हिंसायाम् धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि इससे अन्नसे संबंधित कीड़े नष्ट कर दिये जाते हैं। प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टि से उपयुक्त नहीं है। इसका अर्थात्मक महत्व है। डा. वर्मा के अनुसार द्वितीय निर्वचन स्वरगत औदासिन्यसे युक्त है।४९ वस्तुतः यह निर्वचन ध्वन्यात्मक शैथिल्यसे समन्वित है। इसका अर्थात्मक आधार सर्वथा संगत है। व्याकरणके अनुसार शूर्प माने धातुसे अच् प्रत्यय कर सूर्पम् शब्द बनाया जा सकता है।५०
(६५) ओमास :- इसका अर्थ होता है रक्षक या प्रापणीय। यह बहुबचनान्त है। यास्कने इसका विवेचन द्वादश अध्यायमें किया है। षष्ठ अध्यायमें इस शब्दका मात्र संकेत किया गया है। ओमासः अवितारो अवनीया च। अर्थात् रक्षा करने वाला या प्रापणीय को ओमासः कहा जाता है। इसके अनुसार इस शब्दमें अव रक्षणे या अर्व प्रापणे धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त नहीं है। भाषा विज्ञानके अनुसार यह संगत नहीं है। ___(६६) सोमानमः- इसका अर्थ होता है ऐश्वर्य सम्पादकको या सोम अभिषवन करनेवाले को यह द्वितीयान्तपद है।निरुक्तके अनुसार-सोमानं सोतारम्५१अर्थात् यह . शब्द सु धातुके योगसे निष्पन्न होता है। सु धातु अभिषव, ऐश्वर्य प्रसव आदि अर्थोंमे होता है।इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है।माषा विज्ञानके
३५३:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क