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________________ (५९) विजामातृ :- धन देकर कन्या खरीदने वाला जामाता विजामाता कहलाता है। विजामातृ शब्दको स्पष्ट करते हुए यास्क कहते हैंविजामातुरसुसमाप्तजामातुः२२ अर्थात् गुणोंसे अपरिपूर्ण जामाता। दक्षिण देशमें क्रीतापतिके लिए विजामाता शब्दका प्रयोग होता था। जामातृभाव की असमाप्ति इसमें भी रहती है। अतः असुसमाप्त अ समाप्त जामाताको विजामाता कहते हैं। लगता है वि उपसर्ग असु या अ का स्थानापन्न है। यह निर्वचन अस्पष्ट है। उपसर्ग वि भी अर्थात्मक दृष्टिसे स्पष्ट नहीं है। (६०) जामाता :- यह जमाई, दामादका वाचक है। निरुक्तके अनुसार १. जामाता जा अपत्यं तन्निर्माता२२ अर्थात् सन्तान को निर्माण करने वाला। इस शब्दमें जा पूर्व पद है तथा मा धातु है। जा जाया का वाचक है जा+मा + तृच् = जामातृजामाता। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। दक्षिण देश वाले क्रीता कन्या के पति को विजामाता कहते हैं।४५ व्याकरणके अनुसार जा + माङ् माने या डुमि प्रक्षपणे धातुसे तृच्४५ प्रत्यय कर जामातृ- जामाता शब्द बनाया जा सकता है। (६१) स्याल :- इसका अर्थ होता है पत्नी का भाई, साला। निरुक्तके अनुसार १. स्यालः आसन्नः संयोगेनेति नैदानाः२२ अर्थात् नैदान सम्प्रदाय वालों का मंतव्य है कि वह सम्बन्धमें अत्यंत निकट होता है। इसके अनुसार इस शब्दमें आ १ सद् धातुका योग है। इसके अनुसार सद् से स् तथा युज् से य लेकर स्याल शब्द बनाया गया है। २. स्यात् लाजानावपतीति वा२२ अर्थात् वह सूपसे लाजाको वहनके हाथमें डालता है इसके अनुसार इस शब्दमें स्यात्+लाज+ड प्रत्ययका योग है। ध्वन्यात्मक दृष्टि से यह पूर्ण उपयुक्त नहीं है। अर्थात्मक आधार दोनों निर्वचनोंका उपयुक्त है। विवाह प्रकरणमें लाजाहुतिके समय कन्या भ्राता अपनी बहनके हाथमें लाजा देता है तथा कन्या लाजाकी आहुति डालती है। इस निर्वचनसे तत्कालीन भारतीय संस्कृतिका स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। व्याकरणके अनुसार श्यै +कालन् प्रत्यय कर स्याल शब्द बनाया जा सकता है। या श्या +ला+ कः प्रत्यय कर श्याल: शब्द बनाया जा सकता है।४६ अभी भी विवाहके अवसर पर लाजाहुतिकी विधि प्रचलित है जिसमें कन्या भ्राता बहनके हाथमें रखे वंशपात्रमें लाजा देता है। (६२) लाजा :- यह मूंजे हुए धान (लावा) का वाचक है। निरुक्तके अनुसार लाजाः लाजते:२२ अर्थात् लाजा शब्द भूनना अर्थ वाले लाज् धातुके योगसे निष्पन्न ३५२:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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