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________________ "संवर्तयति वर्तनि सुजाता 57 इस मंत्रांशमें वर्तनि शब्द व्याख्यात है। सम्बर्तयति क्रियापदके द्वारा वर्तनिम् शब्दका सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। वृत् वर्तने धातुके योगसे संवर्तयति क्रिया निष्पन्न होती है। वर्तनिम् शब्दमें भी वृत् धातुका योग है। यह निर्वचन प्रत्यक्ष वृत्याश्रित है। 4. “उरोर्वरीयो वरुणस्ते कृणोतु 58 इस मंत्रांशमें वरीय शब्द व्याख्यात है। उरु शब्द वृहत् या महान् का वाचक है। निरुक्तमें वरतर या श्रेष्ठतरको वरीय माना गया है। उरु एवं वर समान अर्थमें प्रतिपादित है। दोनों शब्दोंका वृधातुसे ही निर्वचन सम्भावित है। व का उ सम्प्रसारणके द्वारा हुआ है। "उरुः से ईयसुन् प्रत्यय के द्वारा वरीयस् या वरीयः बनाया जा सकता है यह निर्वचन परोक्षवृत्याश्रित है। उपर्युक्त निर्वचनोंके परिदर्शनसे स्पष्ट है कि सामवेद संहितामें निर्वचन अन्य संहिताओंके अनुरूप ही लभ्य हैं। इसमें प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दो वृत्तियों पर आधारित निर्वचन है। ध्वनि परिवर्तनकी विभिन्न दिशाएं निर्वचन क्रममें संलक्षित होती हैं। अथर्व संहितामें निर्वचनों का स्वरूप : अथर्व वेदमें ऋक्, यजुः एवं सामवेदके बहुतसे मंत्र पठित हैं जिनमें प्राप्त निर्वचन सभी वेदोंमें समान हैं। अथर्ववेदमें कुछ स्वतंत्र निर्वचन भी प्राप्त हैं, जो अन्य वेदोंमें नहीं हैं । अथर्ववेदके निर्वचन दर्शनमें निम्नलिखित मंत्र द्रष्टव्य “यददः सम्प्रमती रहाव नदता ह ते तस्मादा नद्यो नामस्थ ता वा नामानि सिन्धवः ।। इस मंत्रमें नदी शब्द व्याख्यात है। नदता शब्दसे नदीका सम्बन्ध स्पष्ट प्रति लक्षित है। नदता शब्दमें नद् अव्यक्ते धातुका योग है। नदी शब्द भी नद् अलाके धातुके योगसे निष्पन्न है। नदियां प्रवाहकालमें आबाज करती हैं। यास्कने भी नदी शब्दको नद् अव्यक्त धातुके योगसे ही निष्पन्न माना है। यह निर्वचन प्रत्यक्ष वृत्याश्रित है तथा विकसित निर्वचन प्रक्रिया को द्योतित करता है। २० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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