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________________ वृह.दे. १।२७, १९१. अन्येभ्योऽपि वा. ३।२।१०१, १९२. उणा. ३१७२ स: स्यार्धधातुके (अष्टा. ७।४।४९) इति तः, १९३. ग्रीष्मो ग्रस्यन्तेऽस्मिनसा : सूर्येणनि.दृ.१.४४, १९४. उणा. १।१४९। आतोमक् धातोीभावः पुगागमश्च-ग्रीष्मः), १९५. अर्शआद्यच् अष्टा. ५।२।१२७, १९६. आग्रहायण पोषमासात्मकः हेमन्त: हला. पृ. ७४५. १९७. हन्तेर्मुट् हि च उणा. ३।१२९, अष्टा. ७।३।८४, १९८. हन्त्योषधि वनस्पतीनाम्-नि.दु.वृ. ४।४, १९९. उणा. १।१४७, २००. उणा. ११४१, २०१.अन्येभ्योऽपि. अष्टा. ३.२१७५, २०२. पचाद्यच्-अष्टा.३।१।१३४, २०३. पंचसंख्यामभिभूय वर्तन्ते-नि.दु.वृ., २०४. अष्टा. ३।३।१९, ३।३।१२१, २०५. उपसर्ग घो: कि: अष्टा.३१३।९२. (ख) निरुक्तके पंचम अध्यायके निर्वचनोंका मूल्यांकन निरुक्तका पंचम अध्याय निघण्टुके नैगम काण्डके द्वितीय खण्ड की व्याख्या है। नैगम काण्डके द्वितीय खण्डमें स्वतंत्र पदोंका संग्रह है जिसकी कुल संख्या ८४ है। इन सारे शब्दोंके निर्वचन निरुक्तके इस अध्यायमें किए गए हैं। नैगम काण्डके सारे शब्द क्लिष्ट संस्कार वाले हैं। अनेकार्थक होनेके चलते अर्थानुसंधानमें इन शब्दोंकी व्याख्या में एकसे अधिक निर्वचन करनेकी आवश्यकता पड़ी है। निरुक्तके पंचम अध्यायमें यास्कने कुल १३४ पदोंका निर्वचन किया है जिसमें निघण्टुके नैगम काण्डके द्वितीय खण्डमें पठित ८४ शब्दोंमें ७७ शब्दोंके निर्वचन प्राप्त होते हैं शेष-वक्षः, विष्णुः, परिः, ईम् , सीम्, एनम् और एनाम् इन सात शब्दोंका पूर्व में निर्वचन किया जा चुका है इसकी सूचना देकर रह जाते हैं। इन शब्दोंमें कुछ निपातोंके तो मात्र अर्थ ही बताकर अपना कार्य पूरा कर लेते हैं। एनम् एवं एनाम्के सम्बन्धमें इनका कहना है कि इन शब्दों की व्याख्या चतुर्थ अध्यायमें अस्याः एवं अस्यके निर्वचन प्रसंगमें की जा चुकी है। ये निर्वचन स्पष्ट नहीं हैं। इस अध्याय में ५० ऐसे शब्दोंका भी निर्वचन किया गया है जो शब्द प्रसंगतः प्राप्त हैं। इन शब्दोंका वैदिक भाषामें उपयोग तो है लौकिक संस्कृतमें भी अत्यधिक महत्त्व है। इस अध्यायमें यास्क द्वारा प्रस्तुत१३४ शब्दोंके निर्वचन भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे भी महत्त्वपूर्ण हैं। यद्यपि कुछ निर्वचन भाषा विज्ञानकी कसौटी पर खरे नहीं उतरते। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे उपयुक्त निर्वचनोंमें-सस्निम्,वाहिष्ठ,वावशानः,वार्यम् , अमत्र, २८९: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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