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________________ साथ सुरक्षित है- संस्कृत-भ्रातृ, ग्रीक Phrater, लैटिन Frater, गाथिक Brothor , अंग्रेजी Brother. (१२३) सप्त-पुत्रम् :- यह सूर्य की सात रश्मियोंका वाचक है। निरुक्तके अनुसार-सप्तपुत्रं सप्तमपुत्रं सर्पणपुत्रमिति वा१४४ अर्थात् सूर्यकी रश्मियां ही सप्तमपुत्र होने से सर्पणपुत्रको सप्तपुत्र कहा गया। इसमें सृ गतौ धातुका योग है। सप्तपुत्र सामासिक शब्द है। सप्त पद क्रमशः सप्तम एवं सर्पणका वाचक है ऐतिहासिकोंके अनुसार आदित्य को ही सातवां पुत्र कहा जाता है। ब्राह्मणग्रन्थोंसे भी इसी बातकी पुष्टि होती है।१८९ इस निर्वचनका आधार ऐतिहासिक है। सामासिक आधार भी इसका उपयुक्त है। ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसे भी यह उपयक्त है। हिन्दी भाषाका सपूत शब्द सप्त पुत्र से निकला जान पड़ता है। व्याकरणके अनुसार सप्त + पुम् +त्र = सप्त पुत्रम् माना जा सकता है। (१२४) सप्त :- यह संख्या वाचक शब्द है। इसका अर्थ होता है-सात। निरुक्तके अनुसार सप्तसृता संख्या१४४ अर्थात् यह छ: संख्याओं से आगे गयी होती है। इसके अनुसार सप्त शब्दमें सृप्णतो धातुका योग है। इसका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। ध्वन्यात्मक दृष्टिसे किंचित् शिथिल है। व्याकरणके अनुसार सप् + तुट्१८७ प्रत्यय कर सप्त शब्द बनाया जा सकता है। भारोपीय परिवारकी अन्य भाषाओंमें भी किंचित् ध्वन्यन्तरके साथ सप्त शब्द उपलब्ध होता है। संस्कृत सप्त अवे. हप्त, ग्रीक hepta लैटिन septen ऐ.से. seofen अग्रेजी-seven. ... (१२५) चक्रम्:- चक्रम् का अर्थ होता है चक्का। निरुक्तमें इसके कई निर्वचन प्राप्त होते हैं। :- (१) चक्रं चकतेर्वा अर्थात् यह शब्द चलनार्थक चक् धातुसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह गमन करता है या चलता है। (२) चरतेर्वा अर्थात् इस शब्दमें चर् गतौ धातुका योग है क्योंकि यह गमनशीन है। (३) क्रामते, अर्थात् इस शब्दमें गत्यर्थक क्रम् धातुका योग है। इस आधार पर इसका अर्थ होगा चलने वाला प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। माषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे उपयुक्त माना जाएगा। अन्य निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्व है। इस शब्दको कृ धातुसे भी व्युत्पन्न माना जा सकता है। व्याकरणके अनुसार कृ धातुसे घार्थे क:१८८ कर चक्रम् शब्द बनाया जा सकता है।चक्र शब्दकाअर्थ चक्काके अतिरिक्त राज्य,सेना आयुधविशेष,चक्रवाकपक्षी,समूह,चाक,म्रमर आदि भी होते हैं।१८९ चक्र के अन्य अर्थों २८१ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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