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________________ के अनुसार अद्+ तृन् प्रत्यय कर अत्रिः शब्द बनाया जा सकता है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जाएगा। (८४) वैखानस :- यह एक ऋषि का नाम है। निरुक्तके अनुसार-विखन नाद्वैखानस: अर्थात् (उस स्थान को) खोदने से वे पैदा हुए इसलिए उन्हें वैखानस कहा जाता है। इसके आधार पर वैखानस शब्दमें वि + खन् धातुका योग है वि + खन् +अस् वैखानस: यह निर्वचन ऐतिहासिक आधार पर आधारित है।११५ लौकिक संस्कृत में वैखानस का अर्थ वानप्रस्थ भी होता है।११६ इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार विखनस् +अण् प्रत्यय कर वैखानसःशब्द बनायाजा सकता है।वैखानस शब्दमें अर्थ विस्तारं पायाजाता है।प्रारंभिक अवस्थामें वैखानस ऋषि विशेषका वाचक था। लौकिक संस्कृतमें यह सामान्य तपस्वीके अर्थमें प्रयुक्त हुआ है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगतं माना जाएगा। (८५) भारद्वाजः- यह एक ऋषिका नाम है। भरद्वाजके पुत्रको भारद्वाज कहते हैं। यह तद्धितान्त शब्द है। निरुक्तके अनुसार-भरणाद्भारद्वाज:६५ अर्थात् भरण क्रिया के योगसे भारद्वाज शब्द बना। जो अन्नको धारण करे उसे भारद्वाज कहते हैं। भरति विभर्ति वाजं असौ भरद्वाज: तस्य पुत्र: भारद्वाजः। भरद्वाज से ही भारद्वाज शब्द बन गया है। भृ भरणे धातुका भरत् + वाज (अन्न का वाचक) भरद्वाज :भारद्वाजः। भाषा विज्ञानके अनुसार इस शब्दमें अपश्रुति मानी जाएगी। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। इसका अर्थात्मक आधार ऐतिहासिक है।११७ व्याकरणके अनुसार भरद्वाज अण् प्रत्यय कर भारद्वाजः शब्द बनाया जा सकता है। (८६) विरूप :- इसका अर्थ होता है विविध रूपों माला। निरुक्तके अनुसारविरूप: नानारूप:६५ अर्थात्. अनेक रूप होनेके कारण विरूप कहलाता है। वि + रूप: में वि नाना का वाचक है। यास्क इसके अर्थको ही मात्र स्पष्ट करते हैं। इसका निर्वचन प्रस्तुत नहीं करते। भाषा विज्ञानकी प्रक्रियामें इसे निर्वचन की संज्ञा नहीं दी जायगी। लौकिक संस्कृतमें विरूप:का अर्थ विकृत रूप वाला होता है। वि उपसर्ग प्रायः विकृतका ही वाचक है। व्याकरणके अनुसार वि + रूच + कः प्रत्यय कर विरूपः शब्द बनाया जा सकता है। (८७) महिव्रतः- इसका अर्थ कर्मवीर होता है। निरुक्तके अनुसार -महिव्रतो महाव्रत इति५ व्रत कर्म का वाचक है। इसके अनुसार अर्थ होगा महान् व्रत वाला। २२६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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