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________________ मानते है। (143) पन्था :- पन्थाका अर्थ मार्ग होता है। निरुक्तमें इसके लिए कई निर्वचन प्राप्त होते हैं- (1) पततेर्वा अर्थात् यह पत् धातुके योगसे बनता है। (2) पद्यतेर्वा अर्थात् इसमें पद्गतौ धातुका योग है। (3) पन्थतेर्वा अर्थात् यह शब्द गत्यर्थक पन्थ् धातुके योगसे बना है। तीनोंही गत्यर्थक धातु है अतः सभीका अर्थ होगा जिससे चला जाय । भाषा विज्ञानके अनुसार पन्थ् गतौ धातुसे इसका निर्वचन मानना अच्छा होगा । व्याकरणके अनुसार पत् गतौ + इनि293 पथिन्- पन्था बनाया जा सकता है। (144) अंक :- अंकका अर्थ मोड़ होता है। निरुक्तके अनुसार अंक: अंचते:22 अर्थात् यह शब्द अंचु गतिपूजनयोःधातुसे निष्पन्न होता है । मोड़ या कुटिल अर्थमें अंककी उपर्युक्त व्युत्पत्ति ध्वन्यात्मक आधारसे युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा । लौकिक संस्कृतमें अंकका अर्थ गोद एवं चिह्न होता है।294 चिह्नार्थक अंक शब्द अकि लक्षणे धातुसे घञ् प्रत्यय करने पर बनता है। यास्कके निर्वचनसे ज्ञात होता है कि अंकके अर्थमें काफी परिवर्तन हुआ है। सन्दर्भ संकेत 1-नि0 2 11,2 - खरिच - अष्टा0 8 14 155,3- दो दद्दो- अष्टा० -74 146,4-अच् उपसर्गात्तः- अष्टा0 6 14 147,5-आदेच् उपदेशेडशिति - अष्टा0 6 11 145,6- अथाप्येते निवृत्ति स्थानेष्वादिलोपो भवति" नि0 2 11, 7-श्नसोरल्लोपः- अष्टा0 6 14 1111,8-वर्णागमो वर्णविपर्यश्च द्वौचापरौ वर्णविकार नाशौ । धातोस्तदर्थातिशयेन योगस्तदुच्यते पंचविधं निरुक्तम् ।।9 - कङितिच- अष्टा0 111 15, 10- अनुदात्तोपदेशे0- अष्टा0 6 14 137,11 - क्तक्तवतूनिष्ठा-अष्टा0 111/26, 12- अनुदात्तोपदेशे-अष्टा0 6 14 137, 13 – अथाप्युपधालोपो भवति - नि0 2 11, 14 – अलोऽन्त्यात्पूर्व उपधा - अष्टा0 111 165, 15 – राजा प्रभौचनृपतौ क्षत्रिये रजनीपतौ । यक्षे शक्रे च पुंसि स्यात् – मेदि0 91 1125, 16 – राजतेदीप्यते ह्यसौ पंचानां . लोकपालानां वपुषा-नि0 दु० वृ0 2 11,17- राजा प्रकृति रंजनात्- रघु0 4112, 18- युवृषि इति कनिन् – उणा0 11156,19- अथाप्युपधा विकारो १९० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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