SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपर्युक्त निर्वचनोंसे स्पष्ट है कि योनिः शब्दमें यु मिश्रणे धातुका योग है-यु+ नि:-योनिः । यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार यु मिश्रणेधातुसे नि:342 प्रत्यय कर योनिः बनाया जा सकता (110) रूशत्:- यह वर्णका नाम है तथा सूर्यके लिए प्रयुक्त हुआ है ।243 निरुक्तके अनुसार रोचतेर्बजति कर्मण:244 अर्थात् यह ज्वलत्यर्थक रूच्धातुके योगसे बना है। यह प्रदीप्त दीख पड़ता है। रूच्धातुसे.रूशत् शब्दका निर्वचन दृश्यात्मक आधार पर आधारित है। इसका ध्वन्यात्मक आधार संगतं है।भाषा विज्ञानके अनुसार रूश्धातु ज्यादा उपयुक्त होगा। (111) श्वेत्या :- इसका अर्थ होता है शुभ्र वर्ण वाली। यह उषाका विशेषण है।43 निरुक्तके अनुसार श्वेत्या श्वेतते. अर्थात् श्वितावणे धातुसे श्वेत्या शब्द बनता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार श्वित्धातुसे अच्245 प्रत्यय करने पर श्वेत शब्द बनता है। (112) कृष्णम् :- इसका अर्थ काला वर्ण होता है। यहां कृष्ण रात्रि के विशेषणके रूपमें प्रयुक्त हुआ है।243 निरुक्तकै अनुसार-कृष्णं कृष्यते निकृष्टो वर्ण:24" अर्थात् कृष्ण शब्द कृष्धातुसे बनता है। कृष्ण वर्ण सभी वर्गों से निकृष्ट होता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार कृष् वर्णे धातुसे नक2 प्रत्यय करने पर कृष्ण शब्द बनता है। (113) द्यौ :- इसका अर्थ होता है द्युतिसे युक्त । निरुक्तमें उषा एवं रात्रिके लिए द्विवचनमें धावौ शब्दका प्रयोग हुआ है। द्यौ की व्युत्पत्ति द्योतनात् 247 अर्थात् इसमें धुत् दीप्तौ धातुका योग ह क्योंकि ये प्रकाशित होते है। यह ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे युक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे उपयुक्त माना जायगा । व्याकरणके अनुसार द्युत् दीप्तौ धातुसे डो248 प्रत्यय करने पर यौ शब्द बनता है। द्यौतन्तेऽस्यां द्यौ; गोवत् । (114) अह :- अहन्का अर्थ दिन होता है। निरुक्तके अनुसार उपाहरन्त्यस्मिन् कर्माणि27 अर्थात् इसमें कर्मोका सम्पादन किया जाता है। इसके अनुसार इसमें हज हरणे धातुका योग है। ह का ही गुणगत रूप अहः १८१ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy