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________________ तन्वाअस्त्विति वा अर्थात् हे शरीर तुम्हारा कल्याणहो या इस शरीरके लिए सुखहो इस आधार पर शन्तनु बना। इसके अनुसार शम् (शान्तिका वाचक) + तनु-शन्तनु शब्द है। भाषावैज्ञानिक आधार पर यह निर्वचन उपयुक्त है। नामोंकी सार्थकताके लिए यास्कने उपर्युक्त प्रयास किया है। शान्तनु शब्द महाभारतमें शन्तनुके रूपमें उपलब्ध होता है। इसे ध्वनिपरिवर्तनका परिणाम माना जा सकता है। महाभारत कालीन शन्तनु यास्क चर्चित शन्तनुसे मिन्न है। शन्तनु शब्दमें मंगल अर्थको आधार माना गया है। (84) पुरोहित :- इसका अर्थ होता है यज्ञ सम्पादन करने वाला। निरुक्तके अनुसार पुरोहितः पुर एनं दधति अर्थात् राजा लोग अनुष्ठानमें इन्हें आगे करते है। इसके अनुसार पुरोहित शब्द में पुरः + धा धातुका योग है। शान्तिक पौष्टिकाभिचारिकेषु कर्मसु पुरः एनं दधति पुरस्कुर्वन्ति राजानः14 यास्कके इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है-पुरः +धा-हित पुरोहित। यह शब्द अपेक्षाकृत बाद का बना मालूम पड़ता है क्योंकि धा धातुसे ही बना पुरोधा शब्द वेदोंमें भी प्राप्त होता है जिसमें धा धातुका मूल रूप सुरक्षित है। व्याकरणके अनुसार इसे पुरः+धा (दधातेर्हिः)185 +क्त-पुरोहित बनाया जा सकता है-पुरोऽग्रे धीयते इति पुरोहितः । आज भी अनुष्ठानके सम्पादनमें पुरोहितकोअग्रगामी होना पड़ता है। (85) देवश्रुतम् :- यह सामासिक शब्द है। इसका अर्थ होता है - देवताओंके द्वारा सुना गया। निरुक्तमें मात्र इसका अर्थ स्पष्ट किया गया हैदेवा एनं शृण्वन्ति अर्थात् जब स्तुतियोंको उच्चारण करता है तो देवता इसे सुनते है। इसके अनुसार इसमें देव+ श्रु+क्त प्रत्यय हैं। देव श्रुतम् में पर्याप्त ध्वन्यात्मकता है। व्याकरणके अनुसार भी इसे देव+ श्रु+क्त - देवश्रुतम् बनाया जायगा। यह नाम मंगल आधारसे युक्त है। (86) रराण:- इसका अर्थ होता है देता हुआ या दानशील । निरुक्तके अनुसार रराणः रातिःअभ्यस्तः अर्थात् राणमें रा दानेधातुका योग है एवं रा के अभ्यास (द्वित्व) हो जानेसे रराण शब्द बनता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार इसे रा दाने धातुसे कानच् प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। १७१ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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