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________________ वर्माका यह कथन संगत नहीं है क्योंकि इसका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। यास्कका निर्वचन ऋषियोंकी विश्रुत विशेषता पर आधारित है। इस निर्वचनसे ही ऋषि शब्दमें दर्शनार्थक ऋष् धातुका अनुमान लगाया जा सकता है जो दृश्का ही कालान्तरवर्तीरूप है | व्याकरणके अनुसार इसे ऋष् गतौ धातुसे इन प्रत्यय कर बनाया जा सकता है।75 औपमन्यवका मत यास्क समर्थित है। (80) उत्तर :- इसका अर्थ होता है.उच्चतर । निरुक्तके अनुसार - उत्तरः उद्धततरो भवति" अर्थात् उत्तर (उद्धततर) ऊपरकी ओर उठा हुआ होता है। इसके अनुसार उत्तर शब्दमें उत् + तरप्का योग है उद्धतकाअवशिष्ट उत् + तर - उत्तर ! भाषा विज्ञानके अनुसार उच्चतरको ही प्रयत्नलाघव सिद्धान्तके अनुसार उत्तरमें परिणत हो जाना कहा जा सकता है- उच्च + तर, उत् + तर - उत्तरः । उतके बाद तर को त धातुका तर माना जायगा। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा । व्याकरणके अनुसार इसे तृप्लवन तरणयोः धातुसे अच् प्रत्यय करने पर अतिशयेनोद्गतः उत्तरः बनाया जा सकता है। उत् + तृ- तर् + अच- उत्तरः । उत्तरः के ऊपर, उत्तर दिशा, श्रेष्ठ तथा उत्तरम्का जवाव भी अर्थ होता है।78 (81) अधर :- अधरका अर्थ अधोगति, निम्नतर या नीचे होता है। निरुक्तके अधरोऽधोरः” अर्थात् नीचे गया हुआ होता है। इसके अनुसारअधरः शब्दमें अधः+ अरः का योग है अधः का अर्थ होता है नीचे तथाअरः गया हुआ। निरुक्तके अनुसार अधःका अर्थ होता है जो ऊपर न जा सके-घावतीत्यूर्ध्वगति प्रतिषिद्धा ऊर्ध्वगतिप्रतिषिद्ध होनेसे ही अधः कहलाया। ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे यह निर्वचन उपयुक्त है। अधः+ ऋ गतौका अर अधः अरति गच्छतीति अधरः । ओष्ठका वाचक अधर शब्द भी उसी निर्वचनसे माना जायगा व्याकरणके अनुसार इसे धृञ् घारणे धातुसे अच् प्रत्यय कर धरः तथा न धरः अधरः बनाया जा सकता है। (82) अधः :- अधर शब्दमें ही यह विवेचित है। (83) शन्तनु :- यह संज्ञा पद है। ऋष्टिषेणके छोटे पुत्रका नाम शन्तुन था82 निरुक्त के अनुसार - शन्तनुः शं तनोऽस्त्विति वा शमस्मै १७० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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