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________________ प्रचलन मगही आदि क्षेत्रीय भाषाओंमें भी होता है। हिन्दीमें भी इस शब्दका प्रचलन देखा जाता है। .. (30) ऊति:- इसका अर्थ रक्षा होता है। यह अ* रक्षणे धातुसे निष्पन्न है।व का उ सम्प्रसारणसे हो जाता है।" अव-ऊ-क्तिन्-ऊतिः । सम्प्रसारण भाषा विज्ञानके मान्य सिद्धान्तोंमें है। भाषा विज्ञानके शब्दोंमें इसे टवूमस ळतंकंजपवद यांइनिज या स्वर विकार कहा जाता है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे यह निर्वचन उपयुक्त माना जायगा । ऐतरेय ब्राह्मण में हवे आह्वाने धातुसे हूति तथा वर्ण विकारके द्वारा हू को ऊ आदेश कर ऊतिः का संकेत प्राप्त होता है। हुतिः से ऊतिः में मात्र अर्थात्मक आधार है। ध्वन्यात्मक दृष्टिसे यह उपयुक्त नहीं है। (31) मृदुः- मृदुका अर्थ कोमल होता है। यह शब्द प्रधातुसे निष्पन्न होता है । म्रद्धातु स्थितर् का ऋ सम्प्रसारणके चलते हुआ है। अतःम्र्-ऋ - मृद्+उ:- मृदु । म्रद्धातुसे मृदुका निर्वचन भाषा विज्ञानके अनुसार संगत है तथा निर्वचनकी सूक्ष्म प्रक्रियाका संकेतक है। व्याकरणके अनुसार इसे म्रद् धातुसे कुः प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। (32) पृथु :- इसका अर्थ विपुल या विस्तृत होता है। यह शब्द प्रथ् प्रख्याने धातुसे निषन्न हुआ है। प्रथ् धातुके रं का ऋ सम्प्रसारणके द्वारा हो गया है।भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे यह उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार इसे प्रथ धातुसे कु: प्रत्यय करने पर सम्प्रसारणके द्वारा बनाया जा सकता है। (33) पृषत:-पृषतकाअर्थ बूंद होता है।" यह पुष् सेचनेधातुसे निष्पन्न होता है। प्रष् धातुके रं का ऋहोकर पृबन जाता है। यह र का ऋसम्प्रसारणके द्वारा होता है। यास्कने इस शब्दको सम्प्रसारणके द्वारा निष्पादित निर्वचनोंके उदाहरणमें उद्धृत किया है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे यह निर्वचन उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार पृष् सेचने धातुसे अतच् प्रत्यय कर इसे बनाया जा सकता (34) कुणारू :- इसका अर्थ होता है अव्यक्त शब्द करना । यह शब्द क्वण अव्यक्ते शब्दे धातुसे निष्पन्न होता है। क्वण् धातु स्थित व का उ सम्प्रसारणके द्वारा हुआ है क्वण क् उ–ण् + आरूः - कुणालः । यास्क का १५२ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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