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________________ प्राणीकरण कहेंगे । अल्प प्राण वर्ण द् का महाप्राणवर्ण ध् में परिवर्तन हुआ है। मद् मध् + उ — मधुः । मधुका शाब्दिक अर्थ होगा जिसके पान करने से हर्ष उत्पन्न हो या जो पीने पर तृप्ति प्रदान करे । मधु सामान्य रूप में मदिरा का वाचक है I इसका सोभ अर्थ उपमा पर आधारित है । जिस प्रकार शराब पीने से मस्ती आती है उसी प्रकार सोमपान करनेसे विजयके लिए स्फूर्ति आती है। 4 भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे यह निर्वचन उपयुक्त है क्योंकि इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है । द् वर्ण का ध् में परिवर्तन अन्य शब्दोंमें भी देखा जा सकता है- स्यन्द् - सिन्धु आदि । यास्क मधु शब्दका एक और निर्वचन प्रस्तुत करते हैं- 'धमतेर्विपरीतस्य " अर्थात् धम को विपरीत करके गत्यर्थक धम् धातुसे मधु शब्द बनता है । धम - मध + उ:- मधुः । इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं । शहद वाचिक मधुका भी निर्वचन प्रथम निर्वचनके आधार पर होगा।“ मधु शब्दके अंतिम निर्वचनसे स्पष्ट होता है कि. यहां मधु जलका वाचक है।” व्याकरणके अनुसार इसे मन् ज्ञाने धातु से निष्पन्न माना जा सकता है - मन्+उ: - घ का अन्तादेश - मधुः 148 (27) आस्थत् :- यह अस् धातुके लुङ् लकारका रूप है। इसका अर्थ होता है-बैठाया या क्षेपण किया । यह असु क्षेपणे धातु से बना है । अस् धातुमें थ वर्णका आगम हो गया है। यास्कने वर्णागमके क्रममें इस शब्द का उपस्थापन किया है । " वर्णागम निर्वचन सिद्धान्तके प्रमुख अंगों में है । अस्थ+त–आस्थत् । यह निर्वचन भाषा विज्ञानके अनुसार भी उपयुक्त है । व्याकरणके अनुसार यह अस् धातुके लुङ् लकार प्रथम पुरूष एक वचनका रूप है। इस धातु थुक्का आगम होकर अस्+थ+त – आस्थत् शब्द बना है 150 (28) द्वार : - • द्वारका अर्थ दरवाजा होता है। यह शब्द वृङ् सम्भक्तौ धातुके योग से बनता है । वृङ् धातुसे वार बनता है, जिसमें द का आगम होकर द्वार हो जाता है । यह आगम धातुसे पूर्व हुआ द्वार द्वार । यास्कने इस शब्दको वर्णोपजनके उदाहरणमें उपस्थित किया है। निर्वचन सिद्धांतके अनुकूल यह निर्वचन भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे भी उपयुक्त है। यास्क इसके निर्वचनमें तीन धातुओं की सम्भावना मानते हैं - द्वार:- जवतेर्वा, द्रवतेर्वा, वारयतेर्वा 52 १५० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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