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________________ तीन प्रकारसे प्राप्त होता है। सृतः शब्द से शत:४१ तथा कृष् धातुसे कशा आदि शब्दोंमें ऋ वर्णकी ध्वनि 'अ' सुनायी पड़ती है। पुनः सृप्र शब्द से शिप्र३ ऋष् धातु से ईष्मिण:४४ कृतवान् से कितव५ आदि शब्दोंमें ऋ वर्ण की इ ध्वनि तथा कृन्त् धातुसे कुत्स,४६ निचम्पृसे निचुम्पुण,७७ आदृ से आदुरि४८ आदि शब्दोंमें ऋ वर्णकी उ ध्वनि प्राप्त होती है। (३) वर्ण विकार :- पदोंमें एक वर्णके स्थानमें दूसरे वर्णका विकार वर्ण विकार कहलाता है। वर्ण विकार स्वर एवं व्यंजन दोनों वर्गों में संभव है। यास्कने वर्ण विकारमें उपधा विकारका प्रदर्शन किया है। पदोंके अन्तिम वर्णके पूर्व वर्ण की उपधा संज्ञा होती है।४९ राजन एवं दण्डिन् शब्दोंमें क्रमश: अ एवं इ उपधा है। इन्हीं उपधा वर्गों के दीर्धीकरणका परिणाम राजा एवं दण्डी पद है।५० दीर्धीकरण ही यहां वर्ण विकार हैं। (४) वर्णनाश या वर्णलोप :- पदोंमें किसी वर्णका अदर्शन या अनुपस्थिति वर्णनाश या वर्णलोप कहलाता है। वर्ण लोप स्वर एवं व्यंजन दोनोंका ही हो सकता है। स्वरवर्ण लोपकी भी तीन स्थितियां संभव है- (१) आदि स्वर लोप, (२) मध्यस्वर लोप तथा (३) अन्तस्वर लोपा पद या धातुके आदिमें स्थित स्वरका लोप आदि स्वर लोप कहलाता है। अस् भुवि धातुसे निष्पन्न स्तः, सन्ति आदि पदोंमें धातु स्थित आदि स्वरका लोप हो गया है। धातु या पदके मध्यस्थित स्वरका लोप मध्यस्वर लोप कहलाता है। गम् धातुसे निष्पन्न जग्मतुः एवं जग्मु :५२ शब्दों में गम् धातुस्थ मध्यस्थ गकार स्थित अकार का लोप हो गया है। निरुक्तमें उपधा लोपके प्रसंगमें इन्हें उपस्थापित किया गया है। इसी प्रकार क्रिऋचः से निष्पन्न तृच५३ शब्दमें त्रिस्थित इ स्वरका लोप हो गया है। पदके अन्तस्थ स्वरका लोप अन्तस्वर लोप कहलाता है। इसका प्रासंगिक उदाहरण निरुक्तमें प्राप्त नहीं होता। __व्यंजन वर्ण लोपकी भी तीन स्थितियां होती हैं- (१) आदि व्यंजन लोप, मध्य व्यंजन लोप तथा अन्तव्यंजन लोप। आदि व्यंजन लोपमें पदादि या धात्वादिस्थित व्यंजनका लोप हो जाता है आदि व्यंजन लोपमें पाणिनिका- आदिर्बिटुडव:५४ सूत्र द्रष्टव्य है। इसका अर्थ होता है- धातुके आदि स्थित त्रि,टु तथा डु का लोप हो जाता है, जो अनुबन्ध है। टुवेपृकम्पने धातुसे वेपथुः शब्द निष्पन्न होता है। यहां धातु स्थित आदिव्यंजनका लोप हो गया है। यास्कने आदि व्यंजन लोपका प्रासंगिक उदाहरण नहींदिया हैलेकिन पुष्कर शब्द को वपुष्कर५५ शब्दसे निष्पन्न माना है।निश्चय ही यहां ९९ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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