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________________ निरुक्तमें प्रयुक्त एवं संकेतित अभूत् अमवत आदि शब्द स्वरागम से युक्त हैं। (ख) मध्यस्वरागम : किसी पदके मध्यमें स्वर वर्णके आगमको मध्यस्वरागम कहा जाता है। पृथ्वी पदके मध्य में 'इ' वर्णके आगम होनेसे पृथिवी शब्द बनता है। यास्क मध्यस्वरागमके उदाहरणमें भरूज:११ शब्दको उपस्थापित करते हैं। प्रस्ज पाके धातुसे अङ् प्रत्यय करने पर 'म' वर्णके आगे अ स्वरके बाद 'र' के आगे 'उ' वर्ण का आगम मध्यस्वरागम है। मध्य स्वरका आगम स्वर भक्तिके नामसे भी जाना जाता है जिसका वैदिक प्रयोग प्राय: देखा जाता है। (ग) अन्तस्वरागम :- पदके अन्तमें स्वर वर्णके आगमको अन्तस्वरागम कहा जाता है। मिह सेचने धातुसे निष्पन्न मेघर शब्दमें घ स्थित 'अ' अन्तस्वरागम है। इसी प्रकार 'णह' बन्धने धातुसे निष्पन्न नाध:१३ शब्दमें ध स्थित 'अ' भी अन्तस्वरागम वर्णागमोंमें स्वरवर्णागमकी भांति व्यंजनवर्णागम भी तीन प्रकारके हैं : (क) आदि व्यंजनागम :- पदके आदिमें व्यंजन वर्णके आगमको आदि व्यंजनागम कहा जाता है। इसमें प्राय: पदके आदिमें स्वरके स्थानमें व्यंजन वर्णका आगम होता है। तद्भव शब्दोंमें आदि व्यंजनागमके प्रचुर उदाहरण प्राप्त होते हैं। यथा-ओष्ठ-होठ में अ के स्थान में ह का आ जाना। निरुक्त में आदि व्यंजनागमका प्रासंगिक उदाहरण अल्प प्राप्त होता है। अद् भक्षणे धातुसे निष्पन्न जग्धम्४ (अक्त) आदि पद आदि व्यंजनागमके उदाहरणमें देखे जा सकते हैं। वृङ् सम्भक्तौ से वार में द् आदि व्यंजनागम होकर द्वार शब्द बना है।५ अंगल शब्दसे मंगल एवं आयु: से वायु, असुरसे वसुरको निष्पन्न मानना आदि व्यंजनागमका उदाहरण है।१६ ।। (ख) मध्य व्यंजनागम :- पदके मध्यमें व्यंजन वर्णके आगमको मध्यव्यंजनागम कहा जाता है आस्थत् शब्द अस् भुवि धातुसे निष्पन्न हुआ है इसमें अस्यतेस्थुक्८ से थुक् का आगम होता है। यह थ का आगम शब्दके मध्य आकर मध्यव्यंजनागम कहलाता (ग) अन्तव्यंजनागम :- पदके अन्तमें व्यंजन वर्णका आगमं अन्त व्यंजनागम कहलाता है। पत्नी१९ शब्दमें नुक का आगम अन्त व्यंजनागम है। ' (२) वर्णविपर्यय :- वर्णविपर्यय ध्वनि परिवर्तन सम्बन्धी निरुक्तका पृथक् सिद्धान्त है। इसमें पद के एक वर्णके स्थानमें दूसरे वर्णका परिवर्तन देखा जाता है। इसे भी तीन रूपों में देखा जाता है : (क) आदिविपर्यय :- आदि विपर्ययमें पदके आदि वर्णका परिवर्तन हो जाता ९६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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