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________________ 268 भद्रबाहुसंहिता चतुर्थे मण्डले शुक्रो कुदस्तमनोदयम् । तदा सस्यानि जायन्ते महामेधा: सुभिक्षदा: ॥28॥ पुण्यशीलो जनो राजा प्रजानां मधुरोहितः । बहुधान्यां मही विद्यादुत्तमं देववर्षणम् ॥29॥ अन्तवश्चादवन्तश्च शूलकाः कास्यपास्तथा। बाह्यो वृद्धोऽर्थवन्तश्च पोड्यन्ते सर्षपास्तथा ॥30॥ यदा चान्ये ग्रहा यान्ति 'रौरवा म्लेच्छसंकुलाः। टकणाश्च पुलिन्दाश्च किराता: सौरकर्णजा: ॥31॥ पोड्यन्ते पूर्ववत्सर्वे दुभिक्षेण भयेन च। ऐक्ष्वाको म्रियते राजा शेषाणां क्षेममादिशेत् ॥32॥ यदि चतुर्थ मण्डल में शुक्र का उदय या अस्त हो तो वर्षा अच्छी होती है, मेघ जल की अधिक वर्षा करते हैं, सुभिक्ष और फसल उत्तम उत्पन्न होती है। राजा, प्रजा और पुरोहित धर्म का आचरण करने वाले होते हैं । पृथ्वी में अनाज खूब उत्पन्न होते हैं तया वर्षा भी उत्तम होती है। अन्तधा, अवन्ती, मूलिका, श्यामिका और सर्वत्र पीड़ा होती है । यदि शुक्र अन्य ग्रहों द्वारा आच्छादित हो तो म्लेच्छ, शिली, पुलिन्द, किरात्, सौरकर्णज और पूर्ववत् अन्य सभी भय और दुभिक्ष से पीड़ित होते हैं । इक्ष्वाकुवंशी राजा की मृत्यु होती है, किन्तु अवशेष सभी राजाओं की क्षेम-कुशल बनी रहती है ।।28-32।। यदा "तु पञ्चमे शुक्रः कुर्यादस्तमनोदयौ। अनावृष्टिभयं घोरं दुभिक्षं जनयेत् तदा ॥33॥ सर्व श्वेतं तदा धान्यं के तव्यं सिद्धिमिच्छता। त्याज्या देशास्तथा चेमे निर्ग्रन्थैः साधुवृत्तिभिः ॥34॥ स्त्रीराज्यं ताम्रकर्णाश्च कर्णाटा: कमनोत्कटा: । बालीकाश्च विदर्भाश्च मत्स्यकाशीसतस्कराः ॥35॥ स्फीताश्च रामदेशाश्च सूरसेनास्तथैव च। जायन्ते वत्सराजाश्च परं यदि 'तथा हता: ॥36॥ 1. प्रजाश्च पि पुरोहितः मु०। 2. अन्नधाश्चाप्यावन्तश्च मलिका श्यामकास्तथा । मु० । 3. विनश्च दन्नाश्च मु० । 4. सौरेय। मु० । 5. सौण्टकणिकाः मु० । 6. वा मु० । 7. तदा हताः मु०।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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