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________________ पंचदशोऽध्यायः 267 अहिच्छत्र, कच्छ और सूर्यावर्त को पीड़ा होती है। उत्पात वाले देशों का विनाश होता है ।। 200 यदा वाऽन्ये तिरोहन्ति तत्रस्थं भार्गवं ग्रहाः । निषादा: 'पाण्डवा म्लेच्छा: संकुलस्थाश्च साधवः ॥21॥ कौण्डजा: पुरुषादाश्च शिल्पिनो बर्बरा: शका:। वाहीका यवनाश्चैव मण्डूका: केकरास्तथा ॥22॥ पाञ्चाला: कुरवश्चैव पीड्यन्ते सयुगन्धराः । एकमण्डलसंयुक्ते भार्गवे पीडिते फलम् ॥23॥ यदि द्वितीय मण्डल स्थित शुक्र को अन्य ग्रह आच्छादित करें तो निषाद, पाण्डव, म्लेच्छ, साधु, व्यापारी, कौण्डेय, पुरुषार्थी, शिल्पी, बर्बर, शक, वाहीक, यवन, मण्डूक, केकर, पांचाल, कौरव और गान्धार आदि को पीड़ा होती है। यह एक मण्डल में स्थित शुक्र के पीड़न का फल है ।। 21-23।। तृतीये मण्डले शुक्रो यदास्तं यात्युदेति वा। तदा धान्यं सनिचयं पीड्यन्ते 'व्यूहकेतवः ॥24॥ वाटधाना: कुनाटाश्च कालकूटश्च पर्वत: । ऋषय: कुरुपाञ्चालाश्चातुर्वर्णश्च पीड्यते ॥25॥ वाणिजश्चैव कालज्ञः पण्या वासास्तथाऽश्मका: । अवन्तीश्चापरान्ताश्च सपल्या: सचराचरा: ॥26॥ पीड्यन्ते 'भयेनाथ क्षुधारोगेण चार्दिताः। महान्तश्शवराश्चैव पारसीकास्सयावना: ॥27॥ यदि तृतीय मण्डल में शुक्र उदय या अस्त को प्राप्त हो तो धान्य और उसका समूह विनाश को प्राप्त होता है। मूर्ख और धूर्त पीड़ित होते हैं । वाटधान, कुनाट, कालकूट पर्वत, ऋषि, कुरु, पांचाल और चातुर्वर्ण को पीड़ा होती है। व्यापारी, कुलीन, ज्योतिषी, दुकानदार, वनवासी-ऋषि-मुनि, दक्षिणी प्रदेश, अवन्तिनिवासी, उपरान्तक, गोमांस भक्षी शवरादि, पारसीक, यवनादिक भयभीत और शत्रु के द्वारा पीड़ित होते हैं तथा क्षुधा की पीड़ा भी उठानी पड़ती है। शुक्र के स्नेह, संस्थान और वर्ण के द्वारा नृपपीडन का भी विचार करना चाहिए ॥24-27॥ 1. पाण्डिका मु०। 2. कोटिका: मु० । 3. शंकुगान्धराः। मु०। 4. मूढकेतवः मु० । 5. कुलजाः मु० । 6. वनवासी तथा मु० । 7. भय शस्त्राभ्यां क्षुधारोगेण चादिता मु०। 8. स्नेहसंस्थानवर्णश्च विचार्य नपपीडनम् ॥ मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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