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________________ पंचदशोऽध्यायः 269 क्षुधामरणरोगेभ्यश्चतुर्भागे भविष्यति । एषु देशेषु चान्येषु भद्रबाहुवचो यथा ॥37॥ यदि पंचम मण्डल में शुक्र का उदय या अस्त हो तो अनावृष्टि, दुभिक्ष और भय उत्पन्न करता है। धन-धान्य की वृद्धि चाहने वालों को सभी श्वेत पदार्थ और अनाज खरीद लेना चाहिए और निर्ग्रन्थ साधुओं को इन देशों का त्याग कर देना चाहिए। स्त्री राज्य, ताम्रकर्ण, कर्णाटक, आसाम, बाह्लीक, विदर्भ, मत्स्य, काशी, स्फीत देश, रामदेश, सूरसेन, वत्सराज इत्यादि देशों में क्षुधा, मरण, रोग, दुर्भिक्ष आदि का कष्ट होगा, इस प्रकार का भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।।33-371 यदा चान्येऽभिगच्छन्ति तत्रस्थं भार्गवं ग्रहाः। सौराष्ट्रा: सिन्धुसौवीरा: मन्तिसाराश्च साधवः ॥38॥ अनार्या: कच्छयौधेयाः सांदृष्टार्जुननायकाः। पीड्यन्ते तेषु देशेषु म्लेच्छो वै म्रियते नृपः॥9॥ यदि पंचम मंडल में शुक्र अन्य ग्रहों के द्वारा अभिभूत हो तो सौराष्ट्र, सिन्धु देश, सौवीर देश, मन्तिसार देश, साधुजन, अनार्य (या आनर्त) देश, कच्छ देश, सन्धि के योग्य हैं। पूर्व दिशा के स्वामी भी सन्धि करने के योग्य हैं। इन देशों से पीड़ा होती है तथा म्लेच्छ नप का मरण होता है ।। 38-391 यदा तु मण्डले षष्ठे कुर्यादस्तमथोदयम्। शुक्रस्तदा प्रकुर्वीत भयानि तत्र क्षुद्भयम् ॥40॥ रसाः पाञ्चालबालीका गन्धाराश्च गवोलकाः । विदर्भाश्च दशार्णाश्च पीड्यन्ते नात्र संशयः ॥41॥ द्विगुणं धान्यमर्पण नोत्तरं वर्षयेत् तदा। क्षतैः शस्त्रं च व्याधिं च मूर्छयेत् तादृशेन यत् ॥42॥ यदि शुक्र छठे मंडल में अस्त या उदय को प्राप्त हो तो साधारण भयों को उत्पन्न करता है तथा यहाँ क्षुधा का भय होता है। वत्स, पांचाल, बाह्लीक, गान्धार, गवोलक, विदर्भ, दशार्ण निस्सन्देह पीड़ा को प्राप्त होते हैं। अनाज का भाव दूना महंगा हो जाता है तथा उत्तरार्ध चातुर्मास में वर्षा भी नहीं होती है। शस्त्र, घात और मूर्छा इस प्रकार के शुक्र में होती है ।।40-42॥ 1. सुराष्ट्राः मु० । 2. आनर्तकच्छतन्धेयाः साम्बष्ठाश्चार्जुना जनाः । मु० । 3. म्लेच्छस्य म्रिय ते मु०। 4. वच्छाः । 5. गमेलिकाः मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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