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________________ 178 199 साधारण नामक 178 स्थिर-अस्थिर नामकर्म 179 शुभ-अशुभ नामकर्म सुस्वर-दुस्वर नामकर्म 179 सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यशकीर्ति-अयशकीर्ति नामकर्म 180 गोत्र कर्म 184-202 गोत्र कर्म का स्वरूप 184 गोत्र कर्म जातिगत नहीं 185 गोत्र कर्म के बंध हेतु 189 हीनता-दीनता और गोत्र कर्म 193 मद-त्याग से उच्च गोत्र 194 गोत्र कर्म और स्वाधीनता-पराधीनता 194 गोत्र कर्म का अनुभाव (फल) 195 गोत्रकर्म का सम्बन्ध बाह्य पदार्थों से नहीं 197 गोत्रकर्म और अगुरुलघु गुण गोत्रकर्म : जीव विपाकी 201 अन्तराय कर्म 203-221 अन्तराय कर्म का स्वरूप 203 अन्तराय कर्म के भेद एवं बंध हेतु 203 दानान्तराय एवं अनन्तदान 205 लाभान्तराय एवं अनन्त लाभ (सम्पन्नता) 207 भोगान्तराय एवं अनन्तभोग (सौन्दर्य) 208 उपभोगान्तराय एवं अनन्तभोग (अनन्त माधुर्य) 209 वीर्यान्तराय एवं अनन्तवीर्य 210 अन्तराय कर्म : एक समग्र विश्लेषण 212 अन्तराय कर्म का क्षय और सिद्धावस्था 218 मोहनीय कर्म और अन्तराय कर्म में पारस्परिक सम्बन्ध 218 घातीकर्मों का पारस्परिक सम्बन्ध एवं अन्तराय कर्म । कर्मसिद्धान्त और पुण्य-पाप 222-230 आत्मविकास, सम्पन्नता और पुण्य-पाप 231-238 220
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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