SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 124 130 नो कषाय मोहनीय कर्म के बंध के कारण मोह-विजय क्यों आवश्यक? आयु कर्म आयु कर्म का स्वरूप नरकायु 133 136-151 136 136 तिर्यंचायु 138 139 144 147 150 152-183 152 153 155 157 157 158 163 164 मनुष्यायु देवायु गति और आयु आयु कर्म का स्थिति बंध विशुद्धि भाव से नाम कर्म नाम कर्म का स्वरूप नामकर्म का विस्रसाभाव (पारिणामिक भाव) नामकर्म के बंध हेतु नामकर्म की विभिन्न प्रकृतियाँ गतिनामकर्म जाति नामकर्म एवं इन्द्रियों का विकास शरीर नामकर्म अंगोपांग नामकर्म बंधन नाम, संघातन नाम, संहनन नामकर्म संस्थान नामकर्म वर्णादिचतुष्क आनुपूर्वी नामकर्म विहायोगति नामकर्म अगुरुलघु नामकर्म निर्माण नामकर्म आतप नामकर्म उद्योत नामकर्म पराघात नामकर्म उपघात नामकर्म श्वासोच्छवास नामकर्म तीर्थंकर प्रकृति त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक 164 165 166 166 167 168 170 171 171 172 174 176 176 177-178
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy