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नो कषाय मोहनीय कर्म के बंध के कारण
मोह-विजय क्यों आवश्यक? आयु कर्म
आयु कर्म का स्वरूप नरकायु
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136 136
तिर्यंचायु
138 139 144 147 150
152-183
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मनुष्यायु देवायु गति और आयु
आयु कर्म का स्थिति बंध विशुद्धि भाव से नाम कर्म
नाम कर्म का स्वरूप नामकर्म का विस्रसाभाव (पारिणामिक भाव) नामकर्म के बंध हेतु नामकर्म की विभिन्न प्रकृतियाँ गतिनामकर्म जाति नामकर्म एवं इन्द्रियों का विकास शरीर नामकर्म अंगोपांग नामकर्म बंधन नाम, संघातन नाम, संहनन नामकर्म संस्थान नामकर्म वर्णादिचतुष्क आनुपूर्वी नामकर्म विहायोगति नामकर्म अगुरुलघु नामकर्म निर्माण नामकर्म आतप नामकर्म उद्योत नामकर्म पराघात नामकर्म उपघात नामकर्म श्वासोच्छवास नामकर्म तीर्थंकर प्रकृति त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक
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