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________________ 67 A 76 84 m 90 91 95 दर्शनावरणीय कर्म के प्रकार 64 दर्शन-गुण का विकास-क्रम निर्विकल्प स्थिति और निर्विकल्प अनुभूति (बोध) में अन्तर स्वसंवेदन एवं निर्विकल्पता 70 कामना-त्याग से निर्विकल्पता 72 दर्शनगुण का फल : चेतना का विकास दर्शन-साधना की उपलब्धियाँ दर्शनोपयोग के अभाव में ज्ञानोपयोग नहीं दर्शन गुण, दर्शनोपयोग, ज्ञानगुण एवं ज्ञानोपयोग का भेद । 77 एक समय में एक ही उपयोग 81 ज्ञानोपयोग : दर्शन गुण की उपलब्धि में सहायक सम्यग्दर्शन एवं दर्शन गुण दर्शनावरण कर्म के बंध हेतु दर्शनावरण का अन्य घाति कर्मों से सम्बन्ध अनन्त दर्शन वेदनीय कर्म 95-110 वेदनीय कर्म का स्वरूप साता-असाता वेदनीय कर्म-उपार्जन के हेतु 96 कर्म का फल : एक प्राकृतिक विधान 98 साता एवं असातावेदनीय का फल 103 कर्मोदय से बाह्य निमित्त की प्राप्ति नहीं 104 वेदनीय कर्म हानिकारक नहीं है 107 मोहनीय कर्म 111-135 मोहनीय कर्म का स्वरूप 111 दर्शन मोहनीय 112 मिथ्यात्व के दश प्रकार 112 सम्यक्त्व मोहनीय 117 मिश्र मोहनीय 117 चारित्र मोहनीय 118 कषाय का स्वरूप एवं उसके भेद-प्रभेद 118 क्रोध कषाय-अनन्तानुबंधी आदि भेद 120 मान कषाय-अनन्तानुबंधी आदि भेद 121 माया कषाय-अनन्तानुबंधी आदि भेद 122 लोभ कषाय-अन 122
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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