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दर्शनावरणीय कर्म के प्रकार
64 दर्शन-गुण का विकास-क्रम निर्विकल्प स्थिति और निर्विकल्प अनुभूति (बोध) में अन्तर स्वसंवेदन एवं निर्विकल्पता
70 कामना-त्याग से निर्विकल्पता
72 दर्शनगुण का फल : चेतना का विकास दर्शन-साधना की उपलब्धियाँ दर्शनोपयोग के अभाव में ज्ञानोपयोग नहीं दर्शन गुण, दर्शनोपयोग, ज्ञानगुण एवं ज्ञानोपयोग का भेद । 77 एक समय में एक ही उपयोग
81 ज्ञानोपयोग : दर्शन गुण की उपलब्धि में सहायक सम्यग्दर्शन एवं दर्शन गुण दर्शनावरण कर्म के बंध हेतु दर्शनावरण का अन्य घाति कर्मों से सम्बन्ध
अनन्त दर्शन वेदनीय कर्म
95-110 वेदनीय कर्म का स्वरूप साता-असाता वेदनीय कर्म-उपार्जन के हेतु
96 कर्म का फल : एक प्राकृतिक विधान
98 साता एवं असातावेदनीय का फल
103 कर्मोदय से बाह्य निमित्त की प्राप्ति नहीं
104 वेदनीय कर्म हानिकारक नहीं है
107 मोहनीय कर्म
111-135 मोहनीय कर्म का स्वरूप
111 दर्शन मोहनीय
112 मिथ्यात्व के दश प्रकार
112 सम्यक्त्व मोहनीय
117 मिश्र मोहनीय
117 चारित्र मोहनीय
118 कषाय का स्वरूप एवं उसके भेद-प्रभेद
118 क्रोध कषाय-अनन्तानुबंधी आदि भेद
120 मान कषाय-अनन्तानुबंधी आदि भेद
121 माया कषाय-अनन्तानुबंधी आदि भेद
122 लोभ कषाय-अन
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