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________________ आना अंतःकरण में स्थित विकारों को दूर कर आत्मा को स्वस्थ एवं निर्विकार बनाने की प्रक्रिया है । प्रकृति को प्राणी को विकारी रहने देना पसंद नहीं है । अतः वह विकारों को कर्मोदय के रूप में प्रकट कर उन्हें निर्जरित कर उसे निर्विकार - नीरोग बनाती है। इस दृष्टि से कर्मों का उदय प्राकृतिक विधान है, प्राकृतिक न्याय है । प्राकृतिक न्याय में प्राणी का हित अंतर्निहित है, अहित नहीं है, कारण कि कर्मोदय से प्राणी के अंतस्तल में अंकित राग-द्वेष आदि विकार वेदना के रूप में उदित होकर निर्जरित होते हैं जिससे आत्मा का स्वस्थ - निर्विकार स्वभाव प्रकट होता है। साता एवं असातावेदनीय का फल गोयमा ? सायावेयणिज्जस्स णं भंते । कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प अट्ठविटे अणुभावे पण्णत्ते- तंजा - मणुण्णा सदा मण्णा वा मणुण्णा गंधा, मण्णुणा फासा, मणोसुया, वसुध्या कायसुया । जं वेएड पोग्गलं वा पोग्गले, पोग्गलपरिमाणं वा, वीससावा, पोग्गलपरिणामं ।।......गोयमा? असायावेयणिज्जस्स कम्मस्स जो अमणुण्णा जाव कायदुव्या... पोग्गलपरिणाम । (पन्नवणा पद 23, उद्देशक 1) गौतम! जीव के द्वारा बद्ध कर्म यावत् पुद्गल परिणाम को प्राप्त करके साता वेदनीय कर्म के रूप में प्रकट (उदित) होता है। सातावेदनीय कर्म का आठ प्रकार का अनुभाव कहा है- मनोज्ञ शब्द, मनोज्ञ रूप, मनोज्ञ गंध, मनोज्ञरस, मनोज्ञस्पर्श, मन का सौख्य, वचन का सौख्य, काया का सौख्य । असातावेदनीय कर्म का अनुभाव इसके विपरीत अमनोज्ञ शब्द यावत् काय दुःखता जानना चाहिए । पन्नवणा सूत्र पद 23, उद्दे. 1 में आठों कर्मों के अनुभाव (अनुभाग ) उदय का वर्णन है— इसमें वेदनीय कर्म की सातावेदनीय कर्म प्रकृति के आठ अनुभाव कहे हैं- 1. मनोज्ञ शब्द 2. मनोज्ञ रूप 3. मनोज्ञ गंध 4. मनोज्ञ रस 5. मनोज्ञ स्पर्श 6. मन का सुख 7. वचन का सुख और 8. काया का सुख । ये आठों सुखद हों तो उसे सातावेदनीय का उदय और दुःखद हों तो उसे असातावेदनीय का उदय कहा गया है I इनमें सातावेदनीय कर्म के उदय का सम्बन्ध शब्द, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श इन पाँच इन्द्रियों के विषयों की मनोज्ञता से तथा मन, वचन एवं काया इन तीन के सुखप्रद होने से है और असातावेदनीय कर्म के उदय का वेदनीय कर्म 103
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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