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________________ सम्बन्ध इन्हीं पाँच विषयों की अमनोज्ञता एवं मन, वचन व काया के दुःखद होने से है। इस प्रकार वेदनीय कर्म का सम्बन्ध पाँच इन्द्रियों के विषयों, मन, वचन और काया इन आठों के मनोज्ञ-अमनोज्ञ तथा सुखद- दुःखद अनुभव होने से है। इनका मनोज्ञ अर्थात् सुखद अनुभव होना सातावेदनीय है और अमनोज्ञ व दुःखद अनुभव होना असातावेदनीय है। वस्तु, घटना, परिस्थिति से वेदनीय कर्म का सम्बन्ध नहीं है। एक वस्तु के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श जब मनोज्ञ लगते हैं तब सातावेदनीय का उदय और वही अमनोज्ञ लगने लगे तब असाता का उदय कहा जाता है। कर्मोदय से बाह्य निमित्त की प्राप्ति नहीं जिस वस्तु, व्यक्ति की उपस्थिति के निमित्त से साता-असाता का अनुभाव हो रहा है उन वस्तु, व्यक्ति आदि की उपस्थिति को कर्मोदय नहीं कहा है। उदाहरणार्थ-एक संगीतज्ञ व्यक्ति किसी वाद्य पर गा रहा है, उन गानों की ध्वनि में पड़ौसी की निद्रा में बाधा पड़ने से, छात्र की पढ़ाई में विघ्न पड़ने से उन्हें अमनोज्ञ व दुःखद लग रही है अर्थात् उनके असातावेदनीय का उदय हो रहा है, उसी गाने के शब्द अन्य व्यक्ति को मनोज्ञ लग रहे हैं, उसके सातावेदनीय का उदय हो रहा है। कुछ काल के पश्चात् वे शब्द उसे भी अमनोज्ञ लगने लग गये अर्थात् उसके असातावेदनीय का उदय हो गया। इससे यह मानना कि संगीतज्ञ ने, पड़ौसी व छात्र के असातावेदनीय कर्म के उदय से और अन्य व्यक्ति के पहले सातावेदनीय के उदय से, पीछे असातावेदनीय के उदय से गाना गाया और वाद्य यन्त्र ने ध्वनि प्रसारित की, उचित व उपयुक्त नहीं लगता है। गायक ने गाना अपने मोहनीय या अन्य किसी कर्म के उदय से गाया । उस व्यक्ति में गाने की इच्छा का उत्पन्न होना अन्य व्यक्तियों के साता-असातावेदनीय के उदय से माना जाय, तो अन्य व्यक्ति का कर्मोदय संगीतज्ञ व्यक्ति के होना मानना होगा, जो कर्म-सिद्धांत सम्मत नहीं है। क्योंकि यह नियम है कि अपने कर्म का उदय स्वयं के ही होता है, दूसरे व्यक्ति के नहीं। इससे यह भी सिद्ध होता है कि कर्मोदय से बाहरी निमित्त नहीं मिलते हैं, कर्मोदय आत्म-प्रदेशों में ही होता है। जीव के अपने शरीर व इन्द्रिय के माध्यम से इनका उदय आत्म-प्रदेशों में ही होता है, जहाँ आत्म-प्रदेश नहीं हैं वहाँ कर्म का उदय नहीं होता है। 104 वेदनीय कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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