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________________ अतः कर्म का बंध व क्षय कर्म की स्थिति के बंध और क्षय पर निर्भर करता है। जैसाकि वीरसेनाचार्य ने जयधवला टीका में लिखा है पुव्वयंचियस्य कम्मस्य कुदो रवओ? ट्ठिदिक्वयादो।। द्विदिक्रवयो कुदो? कायक्रवयादो। उत्तं चकम्मं जोअणिमित्तं बज्झई कम्माठिद्दी कयायवया। ताणमभावे बंधट्टिदीणभावा अडइ अंत।। -कसायपाहुड, प्रथम पुस्तक, पृ. 57 शंका- पूर्वसंचित कर्म का क्षय किस कारण से होता है? समाधान- कर्म की स्थिति का क्षय हो जाने से उस कर्म का क्षय होता है। शंका-स्थिति का विच्छेद किस कारण से होता है? समाधान-कषाय के क्षय होने से स्थिति का विच्छेद (घात) होता है अर्थात् नवीन कर्मों में स्थिति नहीं पड़ती है और कर्मों की पुरातन स्थिति का विच्छेद (घात) हो जाता है। कहा भी है योग के निमित्त से कर्मों का आस्रव (अर्जन) होता है और कषाय के निमित्त से कर्मों में स्थिति पड़ती है। इसलिए योग और कषाय का अभाव हो जाने पर बंध और स्थिति का अभाव हो जाता है और उससे सत्ता में विद्यमान कर्मों की निर्जरा होती है। जैसा कि आचार्य श्री वीरसेन स्वामी ने कहा है जइ वि एवमुवदिति तित्थयरा तोवि ण तेसिं कम्मबंधो अत्थि। तत्थ मिच्छतागंजमकआयपच्चयाभावेणवेयणीयवज्जास-कम्माणं बंधाभावदो। वेयणीयस्य वि ण दिठदिअणुभागबंधा अत्थि, तत्थ करायपच्चयाभावादो। जोगो अत्थि ति ण तत्थ पयडिपदेस- बंध णमत्थित्तं वोत्तुं सक्किज्जदे? दिदिबंधेण विणा उदयसकवण आगच्छमाणाणं पदेयाणमुवयारेण बंधववएसुवदेयादो। ण च जिणेगु देअसयलधम्मोवदेओण अज्जियकम्म-संचिओवि अत्थि उदययकवकम्मागमादो असंवेज्जगुणाए मेढीए पुवयचियकम्मणिज्जरंपडिसमयं करेंतेमुकम्म-संचयाणुववतीदो। -कसायपाहुड, प्रथम पुस्तक, पृ. 92-93 XVI प्राक्कथन
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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