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________________ जैनागम में आया ज्ञान शब्द स्वाध्याय के अर्थ में है- पराध्याय अर्थात् पर के अध्ययन के रूप में नहीं है। अपने दोषों या विकारों की उपस्थिति, विकारों के परिणाम, विकारों के निवारण के उपाय व निर्दोषता को जानना अर्थात् स्व का अध्ययन करना, वस्तु-स्वभाव को जानना ही स्वाध्याय है, स्वाध्याय करना ही वास्तविक ज्ञान है। दोषों को दोष रूप या दुःखद जानने से दोष-त्याग का सामर्थ्य आता है, जिससे दोष का त्याग होता है। जीवन निर्दोष व निष्पाप बनता है अर्थात् आत्मा के गुणों का घात करने वाले ज्ञानावरणीय आदि पाप कर्मों का क्षयोपशम व क्षय होता है, जो स्वाध्याय करने से अर्थात् ज्ञान का आदर करने से ही संभव है। सत् शास्त्र का पठन, चिंतन व चर्चा स्वाध्याय का सहयोगी अंग है। इस दृष्टि से सत् शास्त्र का पठन भी ज्ञान का आदर है। यद्यपि ज्ञानावरणीय-कर्म के उपर्युक्त छ: बंध के कारणों में आगम में सर्वत्र ज्ञान से संबंधित अनादर शब्द का ही प्रयोग हुआ है। कहीं पर भी इन कारणों के साथ ज्ञानी व ज्ञान के साधनों का उल्लेख नहीं है। परन्तु, वर्तमान में ज्ञान के साथ ज्ञानी व ज्ञान के साधनों को भी इन छ: कारणों के साथ जोड़ दिया गया है और मुख्य स्थान दिया गया है, जो उचित व उपयुक्त नहीं लगता है। ज्ञानी शब्द के साथ 6 कारणों को लगाने से अनेक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। प्रथम तो आगम में ज्ञानी उसे माना है जो सम्यकदृष्टि है, सम्यकदृष्टि जीव तो विरले ही होते हैं। अतः वनस्पतिकाय के अनन्तानन्त जीव पृथ्वी, पानी आदि स्थावर व विकलेन्द्रिय के असंख्यात जीवों के लिये तो ज्ञानियों के अनादर आदि इन छ: कारणों का प्रसंग ही उत्पन्न नहीं होता। अतः इन अनन्तानन्त जीवों के तो ज्ञानावरणीय-कर्मबंध ही नहीं होना चाहिये, जबकि कर्म-सिद्धान्त में इन सभी जीवों के प्रतिक्षण ज्ञानावरणीय-कर्म का बंध होना माना है। यदि ज्ञानी शब्द से मिथ्यात्वी जीवों को भी ग्रहण किया जाय, तो सभी प्राणी ज्ञानी हैं, कोई भी अज्ञानी नहीं है। अतः प्राणिमात्र का अनादर ही ज्ञानावरणीय-कर्मबंध का कारण हो जायेगा। फिर इन छ: कारणों के साथ ज्ञानी शब्द लगाना ही व्यर्थ हो जायेगा। तथ्य तो यह है कि प्राणी के अनादर करने से ज्ञान पर आवरण आना न तो युक्तियुक्त है और न ही उपयुक्त। फिर निगोद के जीव जो एक शरीर में अनन्त होते हैं, वे किसी ज्ञानावरण कर्म
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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