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________________ भी प्राणी का अनादर कर ही नहीं सकते, उनके ज्ञानावरणीय-कर्म का बंध ही संभव नहीं होगा । यदि आगमकार को ज्ञानावरणीय- कर्म के बंध के कारणों में ज्ञानी शब्द अभीष्ट होता, तो ज्ञान के साथ ज्ञानी शब्द भी सूत्र में लगा देते, मात्र ज्ञान शब्द लगाकर ही न रह जाते। दूसरा तथ्य यह है कि जो छः कारण ज्ञानावरणय-कर्म के साथ लगाये गये हैं, वे ही छः कारण में दशर्नावरणीय कर्म में दर्शन शब्द के साथ लगाये गये हैं। अतः जो नियम ज्ञानावरणीय कर्म पर लागू होता है, वही नियम दर्शनावरणीय कर्म पर लागू होगा। इस तथ्य को समझ लेने के लिए दर्शनावरणीय कर्म को लेते हैं । यदि ज्ञान से ज्ञानी व ज्ञान के साधन को ग्रहण किया जाय, तो दर्शन व दर्शन के साधनों का ग्रहण करना होगा। सभी जीवों में अचक्षु दर्शन तो है ही । अतः सभी जीव दर्शनयुक्त हैं, कोई भी दर्शन रहित नहीं है। अतः सभी जीवों का अनादर दर्शनावरणीय - कर्मबंध का कारण होगा, यही ज्ञानावरणीय - कर्मबंध का भी कारण होगा। दर्शन का अर्थ है- देखना । अतः दर्शन के अनादर का अर्थ हुआ दृश्यमान वस्तुओं को न देखना, परन्तु दृश्यमान वस्तुओं के न देखने से, आँख बन्द कर लेने से, आँख का संयम करने से दर्शनावरणीय कर्म बढ़ जाता हो, ऐसा नहीं है । यही सिद्धान्त ज्ञानावरणीय पर भी चरितार्थ होता है अर्थात् अधिक ज्ञेय पदार्थों को न जानने से तथा वस्तुओं, खगोल, भूगोल, गणित, भाषाएँ, व्याकरण, इतिहास आदि लौकिक विषयों का ज्ञान न होने से ज्ञानावरणीय-कर्म अधिक हो जाता हो, ऐसा नहीं है । ज्ञान एवं अज्ञान में तात्त्विक भेद 1 अज्ञानावरणीय कोई कर्म नहीं है । अतः अज्ञान का क्षयोपशम स्वतंत्र रूप से नहीं है। मोहनीय कर्म की, कषाय की हानि से, विशुद्धि भाव से दर्शनावरणीय का क्षयोपशम होता है। जिससे दर्शन गुण प्रकट होता है - चेतनता का विकास होता है । इन्द्रियों की उपलब्धि होती है, जिनके माध्यम से मतिज्ञान होता है। मोहनीय कर्म में जितनी कमी होगी, उतना ही दर्शन व ज्ञान गुण का आदर होता है, विकास होता है। जिससे दर्शन व ज्ञान की उपयोगिता की क्षमता बढ़ती है। उस क्षमता का उपयोग करना या न करना, कम करना या अधिक करना प्राणी पर निर्भर है। इन सबसे ज्ञान गुण घटता-बढ़ता नहीं है । उस क्षमता का दुरुपयोग (विषय- कषाय ज्ञानावरण कर्म 44
SR No.023113
Book TitleBandhtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhiyalal Lodha
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2010
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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