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________________ तृतीयो विलासः (अथाङ्कच्छेदनम्) अङ्कच्देदश्च कर्तव्यः कालावस्थानुरोधतः ।। २१० ।। अङ्क की समाप्ति - काल (समय) अवस्था के अनुरूप अङ्क को विच्छेद (अङ्क की (समाप्ति) करना चाहिए ।। २१०उ. ।। (अथाङ्कप्रतिपाद्यवस्तुस्वभावः)दिनार्धदिनयोर्योग्यमङ्के वस्तु प्रवर्तयेत् । [ ४२७ ] अङ्क में प्रतिपाद्य वस्तु का स्वभाव- दिन अथवा दिनार्ध ( दोपहर ) के योग्य कथावस्तु को अङ्क में प्रवर्तित करना चाहिए । २०४-२०५।। (अथ गर्भाङ्कलक्षणम्) - अङ्कप्रसङ्गाद् गर्भाङ्कलक्षणं वक्ष्यते मया ।। २११ ।। रसनायक वस्तूनां महोत्कर्षाय कोविदैः । अङ्कस्य मध्ये योऽङ्कः स्यादयं गर्भाङ्क ईरतः ।। २१२ । । वस्तुसूचकनान्दीको दिङ्मात्रामुखसङ्गतः । अर्थोपक्षेपकैहनश्चूलिकापरिवर्जितैः ।।२१३।। पात्रैस्त्रिचतुरैर्युतः । अनेष्यद्वस्तुविषयः नातिप्रपश्चेतिवृत्तः स्वाधाराङ्कान्तशोभितः ।। २१४ । । प्रस्तुतार्थानुबन्धी च पात्रनिष्क्रमणावधिः । प्रथामा न कर्त्तव्यः सोऽयं काव्यविशारदैः ।। २१५ ।। सोऽयमुत्तररामे तु रसोत्कर्षाय कथ्यताम् । नेतुरुत्कर्षको ज्ञेयो बालरामायणे त्वयम् ।।२१६।। अमोघराघवे सोऽयं वस्तूत्कर्षैककारणम् । गर्भाङ्क का लक्षण - अङ्क के प्रसङ्ग के कारण मैं गर्भाङ्क का लक्षण कह रहा हूँ। रस, नायक अथवा कथावस्तु के महान् उत्कर्ष के लिए कुशल (कवियों) के द्वारा (नाटक के ) अङ्क के मध्य में जो अङ्क (का विधान) किया जाता है, वह गर्भाङ्क कहलाता है। वह गर्भाङ्क वस्तुसूचक नान्दी से युक्त, सङ्केतमात्र आमुख से सङ्गत, अर्थोक्षपक से रहित, चूलिका से परिवर्जित (हीन), अल्पकथानक वाला, अपने आधार वाले (मुख्य) अङ्कान्त से सुशोभित, प्रस्तुत अर्थ (कार्य) के अनुबन्ध से युक्त तथा पात्रों के निकलने के समय तक चलने वाला होता है। काव्य (नाट्य) के निष्णात (कवियों) द्वारा यह (गर्भाङ्क) (नाटक के) प्रथम अङ्क में नहीं किया जाना चाहिए। जैसे यह गर्भाङ्क उत्तर ( रामचरित) में रस के उत्कर्ष के लिए, बालरामायण में (नायक) के उत्कर्ष के लिए तथा अमोघराघव में कथावस्तु के उत्कर्ष के
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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