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________________ द्वितीयो विलासः अनौचित्य के कारण प्रथम (अर्थात् अनुकार्य मालविका इत्यादि द्वारा रस की उत्पत्ति) नहीं हो सकती और नट में प्रत्यक्षदृष्ट नायक के समान अश्लील प्रतीति होने के कारण द्वितीय (अर्थात् स्वकान्ता इत्यादि द्वारा भी) रस की उत्पत्ति नहीं होती । [ २४३ ] ननु मालविकादिविभावविशेषस्यानौचित्यात् (स्ववि-) भावस्यासन्निहितत्वात् (सन्निहितत्त्वेऽपि साक्षाद्दृष्टनायकवदश्लीलताप्रतीतेः ) च समाजिकानामपि न नटवदेव रसानाश्रयत्वं प्रसज्यत इति चेद् अत्र केचन समादधते (शङ्का) - यदि मालविका इत्यादि विभाव विशेष का अनौचित्य के कारण और अपने विभाव के सन्निनहित (समीप) न होने के कारण (सन्निहित होने पर भी साक्षाद् — दृष्ट नायक के समान अश्लीलता की प्रतीति होने के कारण) सामाजिकों में नट के समान ही रसाश्रयता होती है। इस विषय में कुछ आचार्य समाधान देते ( करते ) हैं विभावादिभावाना - मनपेक्षितबाह्यसत्त्वानां शब्दोपादानादेवासादितसद्भावानामानुकूल्यापेक्षया निस्साधारणानामपि काव्ये नाट्ये चाभिधापर्यायेण साधारणीकरणात्मना भावनाव्यापारेण स्वसम्बन्धितया विभावितानां साक्षाद्भावकचेतसि विपरिवर्तमानानामालम्बनत्वाद्यविरोधादनौचित्यादिविप्लवरहितः स्थायी निर्भरानन्दविश्रान्तिस्वभावेन भोगेन भावकैर्भुज्यत इति । अनपेक्षित बाह्यसत्त्वों वाले विभाव इत्यादि सद्भावों का शब्दों के उपादान (अभिग्रहण) से ही उपलब्ध सद्भावों की अनुकूलता की अपेक्षा से निस्साधारण लोगों का भी काव्य और नाट्य में अभिधा के पर्याय से साधारणीकरण आत्मा द्वारा भावना- व्यापार से अपने सम्बन्धितता के कारण विभावित (प्रकटित) और प्रत्यक्ष रूप से भावक के चित्त में विपरिवर्तित होते हुए (विभावादि) का आलम्बनत्व इत्यादि का अविरोध होने के कारण अनौचित्य इत्यादि विप्लव से रहित स्थायी (भाव) निर्भरानन्द विश्रान्ति युक्त स्वभाव वाले भोजकत्व के कारण भावकों द्वारा भुज्यमान होता है। अन्ये त्वन्यथा समाधानमाहुः - लोके प्रमदादिकारणादिभिः स्थाय्यनुमानेऽभ्यासपाटवात् सहृदयानां काव्ये नाट्ये च विभावादिपदव्यपदेश्यैः (ममैवैते शत्रोरेवैते तटस्थस्यैवैते न ममैवैते न शत्रोरेवैते न तटस्थस्यैवैते इति सम्बन्धविशेषस्वीकारपरिहारनियमानध्यवसायात्) स्वसम्बन्धित्वे च साधारण्यात् प्रतीतैरभिव्यक्तीभूतो वासनात्मकतया स्थितः स्थायी रत्यादिः पानकरसन्यायेन चर्व्यमाणो लोकोत्तरचमत्कारकारिपरमानन्दमिव कन्दलयन् रसरूपतामाप्नोति । दूसरे आचार्य अन्य प्रकार से समाधान करते हैं- लोक में प्रमदा आदि कारणों के द्वारा रत्यादि स्थायीभावों का अनुमान होने पर अभ्यासकौशल (अभ्यास की कुशलता) के कारण सहृदयों का काव्य और नाट्य में विभाव इत्यादि (विभाव, अनुभाव और व्यभिचारिभाव) भाव के पदों (शब्दों) के अभिधाज्ञान के (शब्दार्थ ज्ञान) द्वारा अपने सम्बन्धितता के कारण साधारणीकरण के कारण प्रतीति से (भावकत्व व्यापार से) अभिव्यक्त हुआ वासनात्मक रूप रसा. १९
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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