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________________ [१५८] रसार्णवसुधाकरः .. यहाँ कैलास के कम्पन से उत्पन्न शिव-गणों का विस्मित होना, कार्तिकेय का (माता की गोद की ओर) पीछे हटना, पार्वती का भयभीत होना इत्यादि अनुभावों द्वारा उनमें उत्पन्न भय का आधिक्यरूपी आवेग व्यञ्जित होता है। केतूदयाद्यथा हन्तालोक्य कुटुम्बिनो दिविषदां धूमग्रहं दिङ्मुखे वस्ताङ्गास्त्वरितं परस्परगृहानभ्येत्य चिन्तापराः । धान्यानामनतिव्ययाय गृहिणीराज्ञापयन्तो मुहु निध्यायन्ति विनिःश्वसन्ति गणशो रथ्यामुखेष्वासते ।।270।।... केतु के उदय से जैसे यह खेद है, कुटुम्बी लोग देवताओं के पुच्छल तारा को सामने देख कर भयभीत शरीर वाले, चिन्ता से ग्रस्त और परस्पर घर को जाकर गृहिणियों को स्वल्प अत्र व्यय करने के लिए आदेश देते हुए कुटुम्बी जन बार-बार पुच्छल तारे को देखते हैं, लम्बी-लम्बी श्वाँस लेते हैं और समूह में होकर रास्ते की ओर मुख करके बैठ जाते हैं।।270।। अथ वातावेगः त्वरयागमनं वस्त्रग्रहणं चावकुण्ठनम् ।।३५।। नेत्रावमार्जनाद्याश्च वातावेगभवाः क्रियाः । (२) वातावेग शीघ्रगमन और वस्त्रों को कसकर पकड़ना, कुण्ठित नेत्रों को पोछना इत्यादि वातावेग से उत्पन्न क्रियाएँ होती है।।३५-३६पू.॥ यथा (वेणीसंहारे २/१९)दिक्षु क्षिप्ताघ्रिपौधस्तृणजटिलचलत्पांसुदिग्धान्तरिक्षः शात्कारी शर्करालः पथिषु विटपिनां स्कन्धकाषैः सधूमः । प्रासादानां निकुंजेष्वभिनवजलदोद्गारगम्भीरधीर श्चण्डारम्भःसमीरो वहति परिदिशं भीरु! किं सम्भ्रमेण ।।271 ।। अत्र वातकृतसंरम्भो वागारम्भेण प्रतिपाद्यते । जैसे (वेणीसंहार २/१९ मे) हे डरपोक! भयभीत होने से क्या लाभ? (इस समय) महलों के उद्यानों में नये बादलों की गर्जना से युक्त गम्भीर धीर प्रचण्ड वायु (आँधी) चारों दिशाओं में बह रही है (जिससे) सभी दिशाओं में उखड़ी हुई जड़ों वाले पौधों और तृणों से मिश्रित उड़ती हुई धूल से अन्तरिक्ष व्याप्त हो गया है, मार्गों पर पेड़ों की डालियों की रगड़ से कंकरीला (किरकिरा) शात्कारी धूमयुक्त हो
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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