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________________ द्वितीयो विलासः |१५७॥ (अत एव) सहसा “नमः शिवाय” इस अर्थोक्ति के साथ प्रफुल्लित और झुका मुख आप का कल्याण करे।।268 ।। अथावेग: चित्तस्य सम्भ्रमो यः स्यादावेगोऽयं स अष्टधा ।।३२।। उत्पातवातवर्षाग्निमत्तकुञ्जरदर्शनात् प्रियाप्रियश्रुतेश्चापि शात्रवव्यसनादपि ।।३३।। (१०) आवेग- चित्त का सम्भ्रम (विक्षोभ) आवेग कहलाता है। वह आठ प्रकार का होता है- (१) उत्पात से (२) वात से, (३) वर्षा से (४) अग्नि से (५) मत्त हाथी से (६) प्रिय श्रवण से (७) अप्रिय श्रवण से (८) शत्रुव्यसन से ॥३२उ.-३३॥ अथोत्पातावेगः तत्रोत्पातास्तु शैलादिकम्पकेतूदयादयः । तज्जा सर्वाङ्गविस्तूंसा वैमुख्यमपसर्पणम् ।।३४।। विषादमुखवैवर्ण्यविस्मयाधास्तु विक्रियाः । (१) उत्पातावेग- शैल इत्यादि का कम्पन, केतु का उदय होना इत्यादि उत्पात होते हैं। उस (आवेग) से उत्पन्न सभी अङ्गों में भय (त्रांस), विमुखता, पीछे हटना, विषाद (नैराश्य) से मुख की निष्षभता, विस्मयता इत्यादि विक्रियाएँ होती है॥३४-३५पू.।। शैलप्रकम्पनाद् यथा (प्रियदर्शिकायाम् १.२) कैलासाद्रवुदस्ते परिचलति गणेषुल्लसत्कौतुकेषु क्रोडं मातुः कुमारे विशति विषमुचि प्रेक्षमाणे सरोषम् । पादावष्टम्भसीदद्वपुषि दशमुखे याति पातालमूलं क्रुद्धोऽप्याश्लिष्टमूतिर्घनतरमुमया पातु हृष्ट शिवो वः ।।269।। अत्र कैलासकम्पजनितप्रमथगणविस्मयकार्तिकेयापसर्पणकात्यायनीसाध्वसादिभिरनुभावस्तगतसम्भ्रमातिशयरूप आवेगो व्यज्यते। शैल (पर्वत) के कम्पन से जैसे (प्रियदर्शिका १.२ में)__ (रावण द्वारा) उठाने के कारण कैलास पर्वत के कम्पित होने पर (फलतः शिव के) गणों के आश्चर्ययुक्त होने पर, माता की गोद में (डर से) कुमार (कार्तिकेय) के प्रविष्ट हो जाने पर, (शंकर के भूषण-भूत) सर्प के सरोष फुफकार कर देखने पर, पैरों को पृथ्वी पर दृढ़ता से सहारा लेने से शिथिल शरीर वाले रावण के पाताल लोक में चले जाने पर- ऐसी स्थिति में रावण की उद्दण्डता से क्रोधित होने पर भी (भयभीत) पार्वती के द्वारा दृढ़ता से आलिङ्गन की गयी मूर्ति वाले (अत एव) प्रसत्र शंकर तुम लोगों की रक्षा करें।1269 ।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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