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________________ द्वितीयो विलासः [१५९] गया है।।271।। यहाँ वायु द्वारा किया गया विक्षोभ वाणी (कथन) के द्वारा प्रतिपादित किया गया है। अथ वर्षावेग:__ छत्रग्रहोऽङ्गसङ्कोचो बाहुस्वस्तिकधावने ।।३६।। छन्नश्रवणमित्याद्या वर्षावेगभवाः क्रियाः । (३) वर्षावेग- छत्रग्रहण, अङ्गसङ्कोच, भुजाओं को व्यत्यस्त रूप से छाती पर रखना (जिससे कि एक व्यत्यस्त (x) चिह्न बने), दौड़ना, छन्न श्रवण इत्यादि वर्षावेग से उत्पन्न होने वाली क्रियाएँ है।।३६उ.-३७पू.।। यथा (कुमारसम्भवे १/५)- .. आमेखलं सञ्चरतां घनानां छायामधस्सानुगतां निषेव्य । उद्वेजिता वृष्टिभिराश्रयन्ते शृङ्गाणि यस्या तपवन्ति सिद्धा ।।272।। अत्र सिद्धानामप्रशिखरधावनेन सम्भ्रमः सूचितः। जैसे- (कुमारसम्भव के १/५ में) (हिमालय के ऊपरी शिखरों पर रहने वाले विश्ववसु-प्रभृति) सिद्ध लोग (पहले धूप की कड़ी गर्मी के कारण कुछ देर के लिए) शिखर के मध्य भाग में छाये हुए बादलों के नीचे शिलाओं पर पड़ने वाली छाया का सेवन करते हैं किन्तु फिर मेघ की वृष्टि से व्याकुल होकर घाम वाले ऊपरी शिखरों पर ही चले जाते हैं।।272।। यहाँ सिद्ध लोगों का ऊपरी शिखर पर जाने से सम्भ्रम सूचित होता है। अथाग्न्यवेगः अग्न्यावेगभवा चेष्टा वीजनं चाङ्गधूननम् ।।३७।। व्यत्यस्तपदविक्षेपनेत्रसङ्कोचनादयः (४) अग्न्यावेग- पङ्खा झलना, अङ्गों का हिलाना,विपर्यस्त पदविक्षेप, नेत्रों का सिकोड़ना आदि अग्न्यावेग में चेष्टाएँ होती हैं।।३७उ.-३८पू.॥ यथा (धनञ्जयविजये ६१) दूरप्रोत्सार्यमाणाम्बरचरनिकरोत्तालकीलाभिघातः प्रभ्रश्यद्वाजिवर्गभ्रमणनियमनव्याकुलब्रघ्नसूतः । लेढि प्रौढ़ो हुताशः कृतलयसमयाशङ्कमाकाशवीथीं। गङ्गासूनुप्रयुक्तप्रथितहुतवहास्त्रानुभावप्रसूतः ।।273।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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