SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमो विलासः अत्र चिरप्रोषितप्रत्यागतरामलक्ष्मणदर्शनानन्देन कौसल्यासुमित्रयोर्बाष्पः । सन्तोष से अश्रु जैसे (रघुवंश १४.५३ में ) - जैसे गर्मी के दिनों में हिमालय का शीतल जल गङ्गा और सरयू के गर्म जल को ठण्डा कर देता है वैसे ही उन कौशल्या और सुमित्रा दोनों की आँखों से बहते हुए आनन्द के शीतल आँसुओं ने शोक के उष्ण आँसुओं को ठण्डा कर दिया ।। 222 ।। धूमेन यथा यहाँ बहुत दिनों से दूर गये पुनः लौटने वाले राम और लक्ष्मण को देखने के आनन्द से कौशल्या और सुमित्रा का अश्रुपात हो रहा है । 1 अस्मिन्क्षणे कान्तमलक्ष्यत् सा धूमाविलैरुद्गतबाष्पलेशैः अन्तर्दलैरम्बुरुहामिवाद्रैरयत्नकर्णाभरणैरपाङ्गैः [ १३५ ] 1122311 अत्र विवाहधूमेन लक्ष्म्याः बाष्पोद्गमः । अथ प्रलय: धूम से अश्रु जैसे उस (लक्ष्मी) ने इस (विवाह के) समय (हवन की जाने वाली अग्नि के ) धुएँ से पङ्किल (गन्दे) निकलते हुए बाष्पकणों वाले तथा कमल की पंखुड़ियों के समान बिना प्रयत्न के कानों तक गीले हुए आँखों के कोनों से प्रियतम (विष्णु) को देखा । । 223 ।। यहाँ विवाह में (हवन की जाने वाली अग्नि के ) घूँऐ से लक्ष्मी का बाष्पोत्पत्ति (आँसू निकलना) वर्णित है। प्रलयो दुःखघाताद्यैश्चेष्टा तत्र विसंज्ञता । ८. प्रलय - दुःख, घात इत्यादि से प्रलय (चेतनाविहीनता) होता है ।। ३१०पू. ।। दुःखेन यथा (रघुवंशे ८ / ३८) - वपुषा करणोज्झितेन सा निपतन्ती पतिमप्यपातयत् । ननु तैलनिषेकबिन्दुना सह दीपार्चिरुपैति मेदिनीम् ।। 22411 अत्रेन्दुमतीविपत्तिजनितेन दुःखेनाजस्य प्रलयः । दुःख से प्रलय जैसे (रघुवंश ८.३८ मे ) - प्राणहीन होकर शरीर से गिरती हुई उस इन्दुमती ने अपने पति अज को भी गिरा दिया अर्थात् इन्दुमती के गिरते ही अज भी बेहोश होकर गिर गये। क्योंकि गिरते हुए तेल की बूँदों के साथ क्या दीपक की लौ पृथ्वी पर नहीं गिर पड़ती है ।। 224 ।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy