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________________ [१३४] रसार्णवसुधाकरः ७. अश्रु- विषाद, रोष, सन्तोष, धूम (धुंआ) इत्यादि के कारण अश्रु (आँसू) निकलता है। उसमें आँसू की बूंदों का निकलना, आँखें पोछना इत्यादि विक्रियाएँ होती हैं।।३०९।। विषादेन यथा (मेघदूते २.३८) त्वामालिख्य प्रणयकुपितां धातुरागैः शिलायामात्मानं ते चरणपतितं यावदिच्छामि कर्तुम् । अस्रस्तावन्मुहुरुपचितैर्दृष्टिरालुप्यते मे क्रूरस्तस्मिन्नपि न सहते सङ्गमं नौ कृतान्तः ।। 220 ।। विषाद से अश्रु जैसे (मेघदूत १.४२ में) (हे प्रिये), प्रणय में कुपित तुम्हें गेरू आदि धातुओं के रंगों से प्रस्तर-खंड पर चित्रित करके जब भी तुम्हारे चरणों पर पड़ना चाहता हूँ तभी बार-बार उमड़ते हुए आँसुओं से मेरी आँखे डबडबा आती हैं। निर्दय दैव उस चित्र में भी हम दोनों के मिलन को नहीं बर्दाश्त करता।।220।। रोषेण च यथा ममैव कान्ते कृतागासि पुरः परिवर्त्तमाने सख्यं सरोजशशिनोः सहसा बभूव । रोषाक्षरं सुदृशि वक्तुमपारयन्त्या मिन्दीवरद्वयमवाप तुषारधाराम् ।।221 ।। अत्र सापराधप्रियदर्शनजनितेन रोषेण मुग्धाया बाष्योद्गमः। रोष से अश्रु जैसे शिङ्गभूपाल का ही (दूसरी नायिका के साथ सम्भोग करके) अपराध किये हुए (प्रियतम) के पास में आने पर प्रियतमा का (गोरा मुख) उसी प्रकार लाल हो गया जैसे कमलिनी और चन्द्रमा का साथ होने पर सफेद कमलिनी लाल वर्ण की हो जाती है। वह सुन्दर नेत्रों वाली अपनी क्रोधपूर्ण बात को न कह पाने के कारण उसकी दोनों कमल के समान आँखें आसुओं की धारा से भर गयी।। 221 ।। यहाँ (परनायिका के समागम का) अपराध करने वाले प्रिय को देखने से उत्पन्न रोष के कारण मुग्धा (नायिका) के आँसुओं का निकलना स्पष्ट है। सन्तोषेण यथा (रघुवंशे १४.५३) आनन्दजः शोकजमश्रुबाष्पस्तयोरशीतं शिशिरो विभेद । गङ्गासरय्वोर्जलमष्णतप्तं हिमाद्रिनिष्यन्द इवावतीर्णः ।।222 ।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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