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________________ प्रथमो विलासः यथा (दशरूपके उद्धृतम् १०२) - एते वयममी दारा कन्येयं कुलजीवितम् । ब्रूत येनात्र वः कार्यमनास्था बाह्यवस्तुषु ।।144।। अथोपदेश: जैसे (दशरूपक में उद्धृत १०२ ) - सज्जनों की आराधना यह है, जैसे ये हम हैं ये स्त्रियाँ हैं, कुल का जीवन यह लड़की है, इनमें से जिससे तुम्हारा प्रयोजन (सिद्ध) हो बतलाओ । बाह्य वस्तुओं में हमारी आस्था नहीं है । ।144 ।। [ ९९ ] यत्र शिक्षार्थवचनमुपदेशः स उच्यते ।। २२५ ।। १०. उपदेश - शिक्षा देने के लिए कहा गया वचन उपदेश कहलाता है ।। २२५. ।। यथा अनुभवत दत्त वित्तं मान्यं मानयत सज्जनं भजत । अतिपरुषपवनविलुलितदीपशिखाचञ्चला लक्ष्मीः ।।145।। जैसे अनुभवशील लोगों को धन दो, आदरणीय लोगों का सम्मान करो, सज्जन लोगों की सेवा करो (क्योंकि) अत्यधिक तीव्र वायु के झोकों से हिलती हुई दीपशिखा के समान लक्ष्मी चञ्चल होती हैं। 1145 ।। अथापदेश: अन्यार्थकथनं यत्र सोऽपदेश इतीरितः । ११. अपदेश - अन्यार्थ कथन ( अन्योक्ति) अपदेश कहलाता है। यथा (सुभाषितावल्याम् १३.५६) - कोशद्वन्द्वमियं दधाति नलिनी कादम्बचञ्चुक्षतं धत्ते चूतलता नवं किसलयं पुंस्कोकिलास्वादितम् । इत्याकर्ण्य मिथः सखीजनवचः सा दीर्घिकायास्तटे चेलान्तेन सिरोदधे स्तनतटं बिम्बाधरं पाणिना ।।146 ।। जैसे (सुभाषितावली १३.५६ में ) - यह कमलिनी हंसों के चोचों से क्षत (आस्वादित) दो कलियों को धारण किये हुए है, यह आम्रलता (आम की आश्रित लता) पुंस्कोकिलों द्वारा स्वाद ले लिये जाने वाले नये पत्ते को धारण कर रही है - इस प्रकार की सखियों की परस्पर बात को सुन कर जलाशय के किनारे पर उस नायिका ने वस्त्र के छोर से स्तनतट (चुचुक) को तथा हाथों से बिम्ब के समान लाल होठों को छिपा लिया । ।146 ।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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