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________________ |९०] रसार्णवसुधाकरः. ___ यहाँ पूर्वोक्त नायिका-वाचक रुक्मिणी और सत्यभामा इन दोनों पदों के पूर्वोक्त सुवर्णता और सत्यकोपता लक्षण वाले अर्थ से जोड़ने के कारण अपलाप है। अथ सन्देशः ____ सन्देशस्तु प्रोषितस्य स्ववार्ताप्रेषणं भवेत् । ७. सन्देश- परदेश गये (प्रियतम) द्वारा अपना समाचार भेजना सन्देश कहलाता है।।२२४पू.॥ यथा (मेघदूते २/४९) एतस्मान्मां कुशलिनमभिज्ञानदानाद् विदित्वा मा कौलीनादसितनयने! मय्यविश्वासिनी भूः । स्नेहानाहुः किमपि विरहे हासिनस्ते ह्यभोगा दिष्टे वस्तून्युपचितरसाः प्रेमराशीभवन्ति ।।142 ।। जैसे (मेघदूत २.४ में) (यक्ष मेघ के द्वारा अपनी प्रियतमा को सन्देश भेजते हुए कहता है)- हे काली काली आखों वाली! पहचान के इस चिह्न के देने से मुझे सकुशल जान कर लोकापवाद के कारण मेरे ऊपर अविश्वास मत करना। (कुछ लोगों ने) प्रेम को विरह में किसी कारण से नष्ट होने वाला कहा है। किन्तु (विरह का) वह स्नेह, उपभोग न होने से अभिलषित पदार्थ के विषय में बढ़े हुए आस्वाद से युक्त होते हुए प्रेमपुञ्ज के रूप में परिणत हो जाता है।।142 ।। अथातिदेश: सोऽतिदेशा मदुक्तानि तदुक्तानीति तद्वचः ।। २२४।। ८. अतिदेश मेरा कहना, तुम्हारा कहना इत्यादि से युक्त कथन अतिदेश कहलाता है।।२२४उ.॥ यथा तनया तव याचते हरिर्जगदात्मा पुरुषोत्तमः स्वयम् । गिरिगह्वरशब्दसत्रिभां गिरमस्माकमवेहि वारिधे ।।143।। जैसे जगत् की आत्मा स्वरूप भगवान् पुरुषोत्तम तुम्हारी पुत्री (लक्ष्मी) को (पत्नी रूप में) माँग रहे हैं। हे समुद्र! पर्वत की कन्दरा में कही गयी ध्वनि के समान (गम्भीर) मेरी वाणी पर ध्यान दो।।143।। अथ निर्देश: निर्देशस्तु भवेत् सोऽयमहमित्यादिभाषणम् । ९. निर्देश- 'वह यह मैं' इत्यादि कथन निर्देश कहलाता है।।२२५पू.।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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