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________________ रसार्णवसुधाकरः विमर्श - यहाँ कमलिनी की दो कलियों द्वारा नायिका के दोनों चुचुकों, नवपल्लव द्वारा नायिका के लाल होठों का, हंसों के चोचों द्वारा आस्वादित तथा पुंस्कोकिलों द्वारा आस्वादित से नायक द्वारा उपभुक्त- इस अन्यार्थ का कथन होने अपदेश है। अथ व्यपदेश: | ९२ ] व्याजेनात्माभिलाषोक्तिर्यत्रायं व्यपदेशकः ।। २२६ ।। १२. व्यपदेश- जहाँ बहाने ( व्याजोक्ति) द्वारा अपनी अभिलाषा का कथन होता है, वह व्यपदेश कहलाता है ।। २२६उ. ।। यथा (अभिज्ञानशाकुन्तले ५ / १) - अहिणवमहुलोलुवो तुमं तह परिचुम्बिअ चूदमंजरि । कमलसवसइमेत्तणिव्वुदो महुअर ! विम्हरिदो सि णं कहं ।।147 ।। (अभिनवमधुलोलुपस्त्वं तथा परिचुम्ब्य चूतमञ्जरीम् । कमलवसतिमात्रनिर्वृतो मधुकर ! विस्मृतोऽस्येनां कथम् ।।) जैसे अभिज्ञानशाकुन्तल ५.१ में - (हे) भौरे, तुम नये (पुष्प) रस के प्रति लालसा युक्त होकर उस प्रकार आम्र-मञ्जरी को चूम कर (अब) केवल कमल के आवास से तृप्त होकर इसे कैसे भूल गये ? ।। 147 ।। अथ बुद्ध्यारम्भाः बुध्यारम्भास्तथा प्रोक्ता रीतिवृत्तिप्रवृत्तयः । ४. बुद्धिज अनुभाव - १. रीति २. वृत्ति और ३ प्रवृत्ति ये बुद्धिज अनुभाव कहलाते हैं।। २२७पू.।। तत्र रीति: रीतिः स्यात् पदविन्यासभङ्गी सा तु त्रिधा मता ।। २२७ ।। कोमला कठिना मिश्रा १. रीति- पदविन्यास ( पदसंघटना) की शैली रीति कहलाती है। वह रीति तीन प्रकार की कही गयी है- (अ) कोमला (आ) कठिना और (इ) मिश्रा। चेति स्यात् तत्र कोमला । द्वितीयतुर्थवर्णैर्या स्वल्पैर्वर्गेषु निर्मिता ।। २२८।। अल्पप्राणाक्षरप्राया दशप्राणसमन्विता । समासरहिता स्वल्पैः समासैर्वा विभूषिता ।। २२९।। विदर्भजनहृद्यत्वात् सा वैदर्भीति कथ्यते । (अ) कोमला रीति- कोमला रीति वर्गों के द्वितीय और चतुर्थ (महाप्राण) स्पर्श
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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