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________________ । ८४] रसार्णवसुधाकरः पुरुष के सात्त्विक भाव- पुरुष के सात्त्विकभाव आठ प्रकार के होते हैं- १. शोभा, २. विलास, ३. माधुर्य, ४. धैर्य, ५. गाम्भीर्य, ६. लालित्य, ७. औदार्य और ८. तेज ॥२१५॥ तत्र शोभा नीचे दयाधिके, स्पर्धा शौर्योत्साहौ च दक्षता । यत्र प्रकटतां यान्ति सा शोभेति प्रकीर्तिता ।। २१६।। १. शोभा- अपने से नीच (व्यक्ति) के प्रति दया और ऊँचे (व्यक्ति) के प्रति स्पर्धा, शौर्य, उत्साह, दक्षता जिसमें प्रकट होते हैं, वह शोभा कहलाता है।।२१६॥ नीचे दयाधिके स्पर्धा यथा (हनुमन्नाटके १२.२) क्षुद्रा सन्त्रासमेनं विजहति हरयोः भिन्नशक्रेभकुम्भा युष्मद्गात्रेषु लज्जां दधति परममी सायकाः सम्पतन्तः ।। सौमित्रे! तिष्ठ पात्रं त्वमसि न हि रुषां नन्वहं मेघनादः किञ्चिभ्रूभङ्गलीलानियमितजलधिं राममन्वेषयामि ।।129।। अत्र प्रथमाधे क्षुद्रकपिविषया दया उत्तरार्धे रामविषया स्पर्धा चेन्द्रजितः प्रतीयते। शौर्यं सत्त्वसारः। उत्साहः स्थैर्यम्। दक्षता क्षिप्रकारित्वम् । एषां नायकगुणनिरूपणावसर एवोदाहरणानि दर्शितानि। नीच के प्रति दया और ऊँचे (व्यक्ति) के प्रतिस्पर्धा जैसे (हनुमन्नाटक १२.२ में) ये तुच्छ छोटे-छोटे वानर भय छोड़ दें, क्योंकि इन्द्र के ऐरावत हाथी के गण्डस्थल को फोड़ने वाले मेरे ये बाण तुम्हारे शरीर पर गिरते हुए परम लज्जित- से हो रहे हैं। अरे लक्ष्मण, तुम भी आराम करो, क्योंकि तुम मेरे क्रोध के पात्र नहीं हो। मैं मेघनाद हूँ, तनिक भ्रूविलास से समुद्र को बाँधने वाले राम को खोज रहा हूँ।।129।। यहाँ श्लोक के पूर्वार्ध में मेघनाद की नीच वानरों के प्रति दया और उत्तरार्ध में रामविषयक स्पर्धा प्रतीत होती है। शौर्यसत्व-सम्पत्रता। उत्साह स्थिरता। दक्षता कार्य करने में क्षिप्रता (जल्दीबाजी)। इनके उदाहरणों को नायक के गुण के निरूपण करने के स्थान पर में देख लेना चाहिए। अथ विलासः वृषभस्येव गम्भीरा गति/रं च दर्शनम् । सस्मितं च वचो यत्र स विलास इतीरितः ।। २१७।। २. विलास- जिसमें साड़ के समान गम्भीर गमन, धैर्य से देखना, मुस्कराहट युक्त वचन होता है, वह विलास कहलाता है।।२१७।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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