SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [८२ रसार्णवसुधाकरः इत्थं श्री शिङ्गभूपेन सत्त्वालङ्कारशालिना ।। २०८।। कथिताः सत्त्वजाः स्त्रीणामलङ्कारास्तु विंशतिः ।। स्त्रियों के बीस सात्त्विक भावों की स्थापना- इस प्रकार सात्त्विक अलङ्कारों के ज्ञाता शिङ्गभूपाल ने स्त्रियों के बीस अलङ्कारों को कहा है।।२०८उ.-२०९पू.।। सत्त्वाद्वशैव भावाद्या जाता लीलादयस्तु न ।।२०९।। अतो हि विंशतिर्भावा सात्त्विका इति नोचितम् ।। शङ्का- सत्त्व से दस ही भाव इत्यादि अनुभाव उत्पन्न होते हैं, लीला इत्यादि नहीं। इसलिए बीस सात्विक भाव होते हैं यह कहना उचित नहीं है।।२०९उ.-२१०पू.।। युज्यते सात्त्विकत्वं च भावादिसहचारिणः ।। २१०।। लीलादिदशकस्यापि छत्रिन्यायबलात् स्फुटम् । समाधान- भाव इत्यादि के सहचारी लीला इत्यादि दस अनुभावों की सात्त्विकता छत्रिन्याय के बल से होती हैं। अर्थात् जिस प्रकार किसी समुदाय में यदि कुछ लोग छाता लिए रहते हैं तो उनके सहचारियों को भी छाता वालों में गिन लिया जाता है उसी प्रकार भाव इत्यादि सत्त्विक अनुभावों के सहयोगी लीला इत्यादि को भी सत्त्विक भावों में गिन लिया गया है।।२१०उ.-२११पू.।। भोजेन क्रीडितं केलिरित्यन्यौ गात्रजौ स्मृतौ ।। २११।। अतो विंशतिरित्यत्र सङ्ख्येयं नोपपद्यते । गात्रज अनुभाव के विषय में भोज का मत- भोज ने क्रीडित और केलि-इन दो और गात्रज अनुभावों को कहा है। उनके मत में गात्रज अनुभावों की संख्या बीस नहीं है।।२११उ.-२१२पू.।। तथाभिहितमनेनैव च “कीडितं केलिरित्यन्यौ गात्रारम्भावुदाहृतौ । बालयौवनकौमारसाधारणविहारभाक् ॥ विशेषः क्रीडितं केलिस्तदेव दयिताश्रयम्' इति।। जैसा उनका कथन है 'क्रीडित और केलि ये दो गात्रज अनुभाव कहे गये हैं जो बाल, यौवन, कौमार्य की अवस्था में विहार करने के भाग हैं। विशेष रूप से क्रीडित और केलि ये दो गात्रज रमणी के आश्रित होते है। उन्होंने उदाहरण भी दिया है उदाहृतञ्च क्रीडितं यथा (कुमारसम्भवे१.२९)___ मन्दाकिनीसैकतवेदिकाभिः
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy