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________________ प्रथमो विलासः [५७]. नूतन समागम की चेष्टाएँ तुम लोगों की रक्षा करें।।७२।। अथ द्वितीययौवनम् स्तनौ पीनौ तनुर्मध्यः पाणिपादस्य रक्तिमा ।।१६९।। उरू करिकराकारावङ्गं व्यक्ताङ्गसन्धिकम् । नितम्बो विपुलो नाभिर्गभीरा जघनं घनम् ।।१७०।। व्यक्ता रोमावली स्नग्ध्यमङ्गकेशरदाक्षिणी ।। द्वितीये यौवने तेन कलिता वामलोचना ।।१७१।। सखीषु स्वाशयज्ञासु स्निग्धा प्रायेण मानिनी । न प्रसीदत्यनुनये सपत्नीष्वभिसूयिनी ।।१७२।। नापराधान् विषहते प्रणयेाकषायिता । रतिकेलिष्यनिभृता चेष्टते गर्विता रहः ।।१७३।। (आ) द्वित्तीय यौवन- इस यौवन में दोनों स्तन स्थूल (विशाल) हो जाते हैं। मध्यभाग (कमर) पतली हो जाती है। हाथों और पैरों में रक्तिमा आ जाती है। दोनों जङ्घाएँ हाथी के सूड़ के आकार वाली हो जाती है। अङ्गों के जोड़ स्पष्ट हो जाते है। रोमावली व्यक्त होने लगती है। अङ्गों, बालों तथा नेत्रों में स्निग्धता आ जाती है। द्वितीय यौवन में मनोहर आँखों वाली अपने आशय को जानने वाली सखियों के प्रति स्निग्ध हो जाती है। प्राय: मानिनी (मान करने वाली) हो जाती है। अनुनय करने पर भी प्रसन्न नहीं होती। सपत्नियों के प्रति ईर्ष्या करती है। प्रियतम के दूसरी नायिका के साथ सम्भोग करने के अपराध को सहन नहीं करती। प्रणय की ईर्ष्या में लाल (क्रोधित) हो जाती है। रतिक्रीडाओं में गुप्त (प्रच्छन्न) रहती हुई चेष्टा करती हैं। सम्भोग में गर्विता रहती है।।१६९उ.-१७३।। यथा (मेघदूते २.१९) तन्वी श्यामा शिखरिदशना पक्वबिम्बाधरोष्ठी मध्ये क्षामा चकितहरिणीप्रेक्षणा निम्ननाभिः । श्रोणीभारादलसगमना स्तोकनम्रास्तनाभ्यां या तत्र स्याधुवतिविषये सृष्टिराद्यैव धातुः ।।73 ।। जैसे (मेघदूत में २/१९) दुबली-पतली युवती, नुकीले दाँतों वाली, पके हुए बिम्बफल के समान निचले ओठ वाली, कमर से पतली, डरी हुई हरिणी के समान (चञ्चल) नेत्रों वाली, गहरी नाभी वाली, नितम्ब के भार के कारण अलसायी चाल वाली, ऊँचे, (उन्नत) पयोधरों से थोड़ी झुकी हुई- (इस प्रकार) स्त्रियों में ब्रह्मा की सबसे पहली रचना सी जो स्त्री वहाँ हो (उसे तुम मेरी प्रियतमा समझ लेना)।।73 ।।
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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