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________________ [५८] रसार्णवसुधाकरः अथ तृतीययौवनम् अस्निग्धता नयनयोगण्डयोलानकान्तिता । विच्छायता खरस्पर्शोऽप्यङ्गानां श्लथता मनाक् ।।१७४।। अधरे मसृणो रागस्तृतीये यौवने भवेत् । तत्र स्त्रीणामियं चेष्टा रतितन्त्रविदग्धता ।।१७५।। वल्लभस्यापरित्यागस्तदाकर्षणकौशलम् । अनादरोऽपराधेषु सपत्नीष्वप्यमत्सरः ।।१७६।। (इ) तृतीय यौवन- तृतीय यौवन में दोनों नेत्र अस्निग्ध हो जाते हैं। दोनों गालों को कान्ति मलिन हो जाती है। अङ्गों में निष्प्रभता, कठोरस्पर्श और थोड़ी शिथिलता आ जाती है। ओठ में स्निग्ध लालिमा होती है। रतिक्रिया में निपुणता, प्रियतम का अपरित्याग, उस (प्रियतम) को आकृष्ट करने की कुशलता, (प्रियतम के) अपराधों के प्रति उपेक्षा तथा सपत्नियों के प्रति ईर्ष्या रहित होना इस यौवन में चेष्टाएँ होती हैं।।१७४-१७६।। यथा आनन्दकोशप्रहसने वक्त्रैः प्रयत्नविकचैर्वलिभैश्च गण्डैमध्यैश्च मांसलतरैः शिथिलैरुरोजैः । घण्टापथे रतिपतेरपि नूनमेता वृन्तश्लथानि कुसुमानि विडम्बयन्ति ।।74।। जैसे आनन्दकोशप्रहसन में प्रयत्न-पूर्वक विकसित मुख, झुर्रा युक्त गालों, मांसलतर (स्थूल) मध्यभाग (कमर) और शिथिल स्तनों के द्वारा कामदेव के राजमार्ग पर (ये नायिकाएं) निश्चित रूप से डालियों से (टूट कर) गिरे हुए फूलों का भी उपहास करती हैं।।74 ।। अथ चतुर्थयौवनम्- --- जर्जरत्वं स्तनश्रोणिगण्डोरुजघनादिषु । निर्मांसता च भवति चतुर्थे यौवने स्त्रियाः ।।१७७।। तत्र चेष्टा रतिविधावनुत्साहोऽसमर्थता । सपत्नीष्वानुकूल्यं च कान्तेनाविरहस्थिति ।।१७८।। (ई) चतुर्थ शैवन- चतुर्थ यौवन में स्त्रियों के स्तन, कूल्हा, गालों, जङ्घाओं, नितम्ब इत्यादि में निर्मांसता हो जाती है। रतिक्रिया के प्रति अनुत्साह तथा असमर्थता, सपत्नियों के प्रति अनुकूलता, प्रियतम से विरह की स्थिति न होना इस अवस्था में चेष्टाएँ होती हैं।।१७७-१७८॥
SR No.023110
Book TitleRasarnavsudhakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJamuna Pathak
PublisherChaukhambha Sanskrit Series
Publication Year2004
Total Pages534
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size31 MB
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